प्रयागराज जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ मार्ग पर शनिदेव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि यहां न्याय के देवता का दर्शन करने से व्यक्ति की हर इच्छा पूर्ण होती हैं और शनि के प्रकोप से भी उसे मुक्ति मिलती है। प्रदेश के पर्यटन नक्शे पर मौजूद इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु आते हैं। शनिवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
प्रयागराज से प्रतापगढ़ जाने वाले मार्ग पर विश्वनाथगंज बाजार के कुशफरा में स्थापित शनिधाम मंदिर की स्थापना सन् 1985 में प्रतापगढ़ जिले के कटरा मेदिनीगंज के जलालपुर ग्राम निवासी परमा महाराज ने कराई थी। बकुलाही नदी के किनारे इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा काले रंग के पत्थर से निर्मित है यह मंदिर कुशफरा नामक स्थान प्रयागराज से जाने पर विश्वनाथगंज बाजार से पूरब दिशा में तकरीबन तीन किलोमीटर जाने पर पड़ता है।
मंदिर की स्थापना आज से 34 साल पहले सन् 1985 में सावन के महीने में परमा महाराज ने कराई थी। मंदिर के वर्तमान पुजारी व परमा महाराज के बेटे मंगलाचरण मिश्र के मुताबिक महाराज जी को स्वप्न में शनिदेव के दर्शन हुए और उन्हें अपने स्थान पर आने के लिए कहा। महाराज जी उक्त स्थान की तलाश करते हुए बकुलाही नदी के समीप एक टीले नुमा जंगल में पहुंचे तो सरपत की झाडिय़ों के बीच में शनिदेव की मूर्ति दबी हुई पाया। फिर उन्होंने वहां पर पूजा की और घर लौट गए। दो-तीन दिन बाद उन्हें दोबारा स्वप्न आया तो फिर उक्त स्थान पर गए और पूजा-पाठ करके अपने कार्यालय चले गए।
महराज जी उस समय सिंचाई विभाग में ठेेकेदार थे। जब उनके काम तेजी से बनने लगे तो अपने साथियों से शनिदेव की मूर्ति मिलने की चर्चा की। फिर वहां पर एक मंदिर बनाने का फैसला किया। गांव के लोगो और साथियों के सहयोग से मंदिर बनाया गया। मंदिर बनने के बाद यहां पर धीरे-धीरे श्रद्धालु आने लगे। और लोगो की मनोकामना पूरी होने लगी। सन् 1986 में उन्होंने शनि मंदिर में सरसों के तेल से अखंड ज्योति जलाई जो आज तक अनवरत जलती आ रही है।
वर्ष 2002 में कुशफरा का यह शनिदेव मंदिर प्रदेश के पर्यटन विभाग के नक्शे पर आया। बकुलाही नदी पर 1997 में पुल का निर्माण भी शुरू किया गया। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मंदिर 85 बीघे के जंगल में दक्षिणी छोर पर स्थित है। यहां वर्ष 2000 से विश्व कल्याण हेतु अखंड सीताराम नाम जाप शुरू किया गया था जो 2020 तक चला था। हर साल यहां पर भंडारा होता है।