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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > भगवान > भगवान श्री राम  
भगवान

भगवान श्री राम  

दिव्यसुधा
Last updated: March 5, 2025 6:11 am
दिव्यसुधा
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भगवान राम, विष्णु जी के सातवें अवतार थे जिनका जन्म त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ था। श्री राम ‘इक्ष्वाकु वंश ’ से संबंधित हैं जिसे राजा ‘इक्ष्वाकु’ जो भगवान सूर्य के पुत्र थे, उनके द्वारा स्थापित किया गया था, इसी वजह से रामचंद्र जी को ‘सूर्यवंशी राजा’ कहा जाता है। श्री रामचंद्र जी हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं; विशेष रूप से वैष्णव परंपरा के मानने वालों के लिए वह महत्वपूर्ण हैं।

दशरथ के मन में, नौ हजार वर्ष की आयु में पुत्र का आभाव होने की ग्लानि हुई। दशरथ ने कई महान ऋषियों, तपस्वियों और विद्वानों को यज्ञ का आमंत्रण दिया, फिर गुरु वशिष्ठ और शृंगी ऋषि के नेतृत्व में यज्ञ शुरू हुआ। वैदिक मंत्र उच्चारणों से यह महान यज्ञ सम्पन्न हुआ। राजा दशरथ ने यज्ञ का प्रसाद अपनी तीनो रानियों कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी को दिया। प्रसाद के फलस्वरूप रानी कौशल्या ने गर्भ धारण किया और इस तरह चैत्र शुक्ल राम नवमी को श्री राम का जन्म हुआ। यज्ञ के प्रसाद से राजा दशरथ के दूसरी रानी सुमित्रा ने दो और कैकेयी ने एक पुत्र को जन्म दिया। इन चारों भाइयों का नाम राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न रखा गया।  एक मान्यता के अनुसार उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम शांता था।  

भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्‍ठ से शिक्षा प्राप्‍त की। गुरु विश्वामित्र उन्‍हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए साथ ले गये। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा। इस दौरान ही गुरु विश्‍वामित्र उन्हें नेपाल ले गये। जहां भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, तब विश्‍वामित्र जी की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष उठा कर प्रत्‍यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया। उनकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में वह महान धनुष घोर ध्‍‍वनि करते हुए टूट गया। इस प्रकार सीता का विवाह राम से हुआ । अयोध्या में राम सीता 12 वर्ष तक सुखपूर्वक रहे।

श्री राम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन दिया था। कैकेयी ने वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन में जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए।

 भगवान राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ पंचवटी के आश्रम में रह रहे थे. उस दौरान एक दिन शूर्पणखा भगवान राम और लक्ष्मण को देखकर मोहित हो जाती है. वह भगवान राम को विवाह का प्रस्ताव देती है, लेकिन उसे लक्ष्मण जी के पास भेज देते हैं. लक्ष्मण ने भी विवाह प्रस्ताव को नकार दिया तो वह सीता जी को मारने के लिए बढ़ती है, लेकिन तभी लक्ष्मण जी बीच में आ जाते हैं और उसका नाक काट देते हैं. शूर्पणखा वहां से भागकर अपने भाइयों खर और दूषण के पास मदद के लिए जाती है, वे दोनों रामजी से युद्ध में मारे जाते हैं, तो शूर्पणखा रावण के पास मदद के लिए जाती है और यहीं से रावण सीता हरण की साजिश रचता है. बाद रावण मारीच के पास पहुंचता है. मारीच एक मायावी राक्षस था, वह रूप बदलने में माहिर था. रावण सीता हरण में उससे मदद करने को कहता है. लेकिन मारीच मना कर देता है tb रावण उसे जान से मारने का डर दिखाता है तो मारीच सोचता है कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि वह राम के हाथों मारा जाए.

रावण के डर से मारीच सोने के हिरण का रूप करके सीता जी के सामने मंडराने लगता है. सीता जी सोने का हिरण देखकर मोहित हो जाती हैं और प्रभु राम से उसे लाने की बात कहती हैं. सीता जी की बात रखने के लिए प्रभु राम उस सोने के हिरण के पीछे जाते हैं. साजिश के तहत रावण ने मारीच को कुटिया से काफी दूर जाने को कहा था, ताकि राम और लक्ष्मण उसके पीछे जाएं और सीता जब अकेली हों तो रावण उनका हरण कर ले. मायावी मारीच जंगल के अंदर भागने लगता है. जब प्रभु राम उस हिरण पर बाण से प्रहार कर देते हैं. बाण लगते ही मारीच जमीन पर गिर पड़ता है और प्रभु राम की आवाज में मदद के लिए चिल्लाने लगता है.

राम जी की आवाज सुनकर सीता जी विचलित हो जाती हैं. वे लक्ष्मण जी को मदद के लिए भेजती हैं. लक्ष्मण जी माता सीता की रक्षा के लिए कुटिया के बाहर एक लक्ष्मण रेखा खींच देते हैं और उनको इस रेखा को पार न करने का निवेदन करते हैं.

लक्ष्मण जी के जाते ही रावण वहां पर साधु का भेष धारण करके आता है. वह सीता जी से भिक्षा मांगता है. Aur वह कहता है कि रेखा के अंदर से भिक्षा नहीं लेगा. तब माता सीता उस लक्ष्मण रेखा को लांघती हैं और रावण को भिक्षा देती हैं. तभी रावण उनको हरण करके  लंका ले जाता है.

सीता हरण के बाद जटायु ने उन्हें रावण के बारे में बताया तो श्रीराम पंचवटी से दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ने लगे। पंचवटी की ओर जाने  के बाद श्रीराम दक्षिण दिशा में किष्किंधा राज्य पहुंचे थे।

श्रीराम से हनुमान की पहली मुलाकात तब हुई, जब राम-लक्ष्‍मण सीता की खोज में वन-वन भटक रहे थे. राम-लक्ष्‍मण जब मां शबरी की कुटिया पर पहुंचे, तब शबरी ने उन्‍हें दक्षिण दिशा का मार्ग बतलाया. श्रीराम ने कबन्‍ध का भी उद्धार किया था, जिन्‍होंने उन्‍हें वानरराज सुग्रीव से मित्रता करने का सुझाव दिया था. सुग्रीव का निवास-स्‍थल खोजते हुए राम-लक्ष्‍मण जब ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुंचे तो उन्‍हें देखकर वानरदल को उन पर संदेह हुआ।  

सुग्रीव ने उनके बारे में पता करने के लिए तब अंजनी पर्वत से हनुमानजी को बुलाया और कहा कि, उनके वन में 2 तेजस्‍वी युवा नर भटक रहे हैं, वे कौन हैं,

तब हनुमानजी ने एक साधु का रूप धारण करके राम-लक्ष्‍मण के पास जाकर बोले- आप कौन हैं जो वन में फिर रहे हैं…? तब राम-लक्ष्‍मण ने अपना परिचय दिया. राम नाम सुनते ही हनुमानजी ने प्रभु को पहचान लिया. और साष्टांग दंडवत प्रणाम किया।  

फिर हनुमान जी वानरराज सुग्रीव के पास पहुंचे, वहां जाकर हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के बारे में बताया और माता सीता के रावण द्वारा हरण किए जानें की कथा सुन वानराज सुग्रीव ने भगवान श्रीराम का सहयोग करने का अश्वासन दिया और उनसे मित्रता भी कर ली.

किष्किंधा में श्रीराम ने बालि को मारकर सुग्रीव को राजा बना दिया था। इसके बाद सुग्रीव ने चारों दिशाओं में सीता की खोज में वानर सेना भेजी थी। हनुमान जी की भेंट संपाति से हुई। संपाति ने बताया कि सीता लंका में है। हनुमान जी लंका पहुंचते हैं और सीता की खोज करके श्रीराम के पास किष्किंधा आते हैं। इसके बाद श्रीराम वानर सेना के साथ दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचते हैं। यहां नल-नील की मदद से समुद्र पर पुल बांधकर श्रीराम पूरी वानर सेना के साथ लंका पहुंच जाते हैं। लंका में श्रीराम ने रावण का वध करके सीता को मुक्त कराया। इसके बाद श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आते हैं।

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