नवरात्रि विशेष… माँ दुर्गा के कन्या पूजन में भैरो को क्यों मिला स्थान

bhairav baba

नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि का व्रत करने वाले भक्त अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं। इसमें 9 कन्याएं बैठाई जाती हैं। इनका मां दुर्गा के 9 रूपों के रूप में पूजन किया जाता है। इन 9 कन्याओं के साथ एक लड़के को भी बैठाया जाता है। इसे लंगूरा, लांगुरिया, बटुक कहा जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों में कन्या पूजन के दौरान लड़के को बैठाने के लिए अलग-अलग मान्यताएं हैं। कई स्थानों पर कन्या पूजन के दौरान हनुमानजी के रूप में लंगूरा या लांगुरिया को बैठाया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर बटुक के तौर पर शिवजी के रूप भैरव बाबा की पूजा होती है। इसी तरह कन्या पूजन के दौरान भैरोनाथ के रूप में भी लड़का बैठाने का महत्व है। भैरोनाथ को भी हलवा-पूड़ी का भोग लगाया जाता है। तो आइए जानते हैं कन्या पूजन के दौरान लड़का बैठाना का क्या महत्व है।

व्यापक तौर पर कन्याओं के साथ बैठाए जाने वाले बालक को भैरोनाथ का रूप माना जाता है। मान्यता है कि वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद भैरोनाथ के दर्शन करने अनिवार्य हैं, वरना मां की पूजा और दर्शन अधूरी मानी जाती है। ठीक इसी प्रकार कन्या पूजन में लड़के भैरव बाबा के रूप में बैठाया जाता है। इसके बाद ही कन्या पूजन को पूरा माना जाता है। वहीं भगवान शिव के रूप भैरव बाबा को कन्या पूजन में बैठाने का महत्व यह है कि उनको मुख्य रक्षक माना जाता है, जिन्हें मां दुर्गा के अंगरक्षक या सेनापति के रूप में पूजा जाता है। शक्ति की उपासना के समय भैरव बाबा की उपस्थिति अनिवार्य होती है।

मां दुर्गा और भैरोनाथ की कथा-
कहा जाता है कि कटरा के पास एक गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। वह एक बार नवरात्रि में कन्या पूजन कर रहे थे। मां वैष्णो भी कन्या के वेष में आकर वहां बैठ गई। इसके बाद मां ने श्रीधर से पूरे गांव में भंडारा करने को कहा। इसमें ग्रामीण से लेकर बाबा भैरोनाथ भी पहुंचे। जब भंडारा परोसा जा रहा था तब भैरोनाथ ने कन्या से कहा कि वह मांस और मदिरा खाएंगे। मां ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं माने, क्योंकि उन्हें पता था कि कन्या के रूप में माता है और उन्हें मां के हाथों मोक्ष मिल जाएगा।

माता उनकी चाल समझ गईं। इसके बाद मां त्रिकुटा पर्वत की तरफ चली गईं। भैरोनाथ उनके पीछे-पीछे चले गए। यहां मां ने एक गुफा में 9 महीने तक तप किया। जब भैरोनाथ वहां पहुंचे तो मां ने गुफा के दूसरे तरफ से रास्ता बनाया जिसे अर्धकुमारी या गर्भजून के नाम से जाना जाता है। मां जब गुफा के दूसरी तरफ से निकलीं तब भी भैरोनाथ वहां आ गए और माता की चेतावनी के बाद भी नहीं माने। तब मां की गुफा के बाहर मौजूद हनुमान जी और भैरोनाथ के बीच युद्ध हुआ। लेकिन जब उसका कोई परिणाम नहीं निकला तो मां ने महाकाली का रूप धारण कर भैरोनाथ का वध किया।

भैरोनाथ का सिर करीब 8 किमी दूर घाटी में जा गिरा और वह स्थान भैरव नाथ मंदिर से प्रसिद्ध हुआ। तब भैरोनाथ ने माता से माफी मांगी। मां उनकी मंशा जानती थीं इसलिए उन्हें माफ करते हुए वर दिया कि मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन अनिवार्य होंगे। इसके बाद से मां के दर्शन के बाद भैरोनाथ के दर्शन किए जाते हैं और मां के पूजन के बाद उनका पूजन होता है।