उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर अपनी भव्य रथ यात्रा और दिव्य महाप्रसाद के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह में निकलने वाली इस यात्रा में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन और प्रसाद ग्रहण के लिए आते हैं। मान्यता है कि इस महाप्रसाद से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, जीवन में सुख-शांति आती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर में स्थित रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई माना जाता है, जहां परंपरागत तरीके से रोजाना लाखों लोगों के लिए प्रसाद बनाया जाता है। यहां तीन प्रकार के प्रसाद बनते हैं, जिनमें से एक विशेष प्रसाद “मोक्ष प्रसाद” कहलाता है, जो आत्मा की मुक्ति का मार्ग माना जाता है।
कौन-कौन से होते हैं जगन्नाथ मंदिर में 3 प्रकार के प्रसाद
उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल अपनी रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां बनने वाले प्रसाद की भी विशेष मान्यता है। मंदिर में तीन प्रकार के प्रसाद तैयार किए जाते हैं। पहला होता है ‘संकुदी प्रसाद’, जिसे मंदिर परिसर में ही ग्रहण किया जाता है और बाहर ले जाना वर्जित होता है। दूसरा है ‘सुखिला प्रसाद’, जिसमें सूखी मिठाइयां और नमकीन होते हैं, जिसे श्रद्धालु अपने साथ घर ले जा सकते हैं और रिश्तेदारों में बांट सकते हैं। तीसरा और सबसे विशेष होता है ‘निर्मला प्रसाद’, जिसे ‘मोक्ष प्रसाद’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसे खाने से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनकी मृत्यु निकट होती है। यह प्रसाद ‘कोइली बैकुंठ’ नामक स्थान पर तैयार किया जाता है, जहां भगवान जगन्नाथ की पुरानी प्रतिमाओं को दफनाया जाता है। इस वर्ष रथ यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई को समाप्त होगा।
इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण करते हुए भक्तों को दर्शन देते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं।