एक बार बरसाना और उसे आसपास के गावों में भयानक अकाल पड़ा। वहां रहने वाले लोगों और साधू संतों को भोजन की बहुत समस्या आने लगी। अकाल के कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। वहाँ की समस्याओं को देखते हुए बरसाना के लोगो ने गांव छोड़ने का मन बना लिया l बरसना में एक संत जी रहते थे l वो दिन भर भिक्षा मांगते और उन्हें जो भी मिलता था पहले राधा रानी को भोग लगाकर फिर स्वयं भोजन ग्रहण करते थे। बरसाना में अकाल होने कारण उन्हें भिक्षा मिलना समाप्त हो गया l और उनकी कुटिया में पड़ा भोजन समाग्री समाप्त हो गया l इन समस्याओं से विवश होकर वहां के लोगो ने और संत जी ने बरसाना छोड़ने का मन बना लिया। संत जी हाथ जोड़कर क्षमा याचना करते हुए राधा रानी से बोलने लगे मुझे क्षमा करना श्री जी परिस्थिति वश यह गांव छोड़ कर जाना पड़ रहा है।
संत जी की पुकार सुनकर राधा जी एक ब्रज कन्या का रूप धारण करके पूछने लगी बाबा आप कहाँ जा रहें हैं संत जी ने रोते हुआ बोले यहां पर अकाल के कारण भिक्षा नहीं प्राप्त हो रही इसलिए इस पेट की भूख शांत करने के लिए मुझे इस बरसाना को छोड़ कर जाना पड़ रहा हैं l संत जी की बात सुनकर कन्या कहने लगी बाबा मेरे घर आप भिक्षा लेने आ जाना मेरी मैया रोज संतों को देने के लिए भोजन निकलती हैं संत जी कहने लगे कन्या मैं तुम्हारा घर नहीं जानता l कन्या बोली कि, बाबा मैं श्रीधर वैद्य की पुत्री राधा हूं। मेरे घर जाकर आप कहना कि जो आले में भोजन पड़ा है वह मुझे भिक्षा में दे दो। संत जी ब्रज कन्या के बताएं घर पर पहुंच कर भिक्षा के लिए आवाज लगाई। वैद्य जी बाहर आकर कहने लगे कि, बाबा आज तो हमने भिक्षा के लिए भोजन नहीं निकाला । संत जी जे वैद्य से बोला मुझे आपकी पुत्री राधा ने भेजा है। उसने कहा था कि, मां ने आले में भोजन रखा है। वैद्य जी ने आश्चर्य से संत जी को बताया कि मेरी पुत्री राधा की मृत्यु तो कई साल पहले हो गई थी। वैद्य जी ने संत के कहने पर आले में देखा तो वहां पर सभी प्रकार के भोजन रखें थे। वैद्य जी की पत्नी कहने लगी कि, मै तो कभी यहाँ पर भोजन नहीं रखती हूँ l वैद्य जी जान गए कि यह श्री राधा रानी की कृपा है। वैद्य जी ने बड़े ही प्रेम भाव से संत जी को भोजन करवाया। वैद्य जी कहने लगे कि बाबा आप रोज आकर यहाँ से भोजन लेकर जाना l राधा रानी की कृपा से संत जी के प्रतिदिन के भोजन की समस्या दूर हो गयी l इसलिए कहा जाता है कि राधा रानी बड़ी करूणामयी है राधा रानी वह अपने सभी भक्तों और संतों का सदैव ख्याल रखती है।
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