हिंदू धर्म में भगवान की उपासना करने के लिए पूजा-पाठ की जाती है. ज्यादातर लोग आरती को पूजा की ही एक प्रक्रिया समझते हैं। लेकिन आरती का अपना एक बड़ा महत्व होता है। आरती उपासना की एक विधि होती है। दीए में एक जलती लौ, कूपर को लेकर भगवान शीश से लेकर चरण तक आरती उतारी जाती है इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और मन को भी शांति मिलती है. भगवान की पूजा के बाद आरती करने का भी विधान है और आरती के बाद ही पूजा सम्पन्न मानी जाती है. कहते हैं कि आरती करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. धार्मिक शास्त्रों में भी आरती का विशेष महत्व माना गया है. कहा जाता है कि बिना आरती के कोई पूजा या कार्य पूरा नहीं होता. ऐसे में आज हम आपको आरती का महत्व और इसे करने का सही तरीका बताएंगे ।
किसी भी पूजा का समापन हमेशा आरती से करने का मतलब यही है कि यह इस बात का संकेत है कि अब पूजन समाप्त हो गया है और हम भगवान् से कुशलता की कामना करने वाले हैं। आरती को एक हिंदू अनुष्ठान माना जाता है जो एक भगवान के प्रति प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। यह शब्द संस्कृत शब्द अरात्रिका से लिया गया है, जो उस प्रकाश को संदर्भित करता है जो रात्रि या अंधेरे को दूर करती है।
स्कंद पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने खुद कहा है कि जो व्यक्ति अनेक बत्तियों से युक्त और घी से भरे हुए दीप को जलाकर मेरी आरती उतारता है, वह कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है. जो प्राणी मेरे आगे होती हुई आरती का दर्शन करता है, वह अंत में परमपद को प्राप्त होता है. जो मेरे आगे भक्तिपूर्वक कपूर की आरती करता है, वह मनुष्य मुझ अनंत में प्रवेश कर जाता है. यदि मंत्रहीन और क्रियाहीन मेरा पूजन किया गया है, लेकिन वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है ।
स्कंद पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने खुद कहा है कि जो व्यक्ति अनेक बत्तियों से युक्त और घी से भरे हुए दीप को जलाकर मेरी आरती उतारता है,वह कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है. जो प्राणी मेरे आगे होती हुई आरती का दर्शन करता है,वह अंत में परमपद को प्राप्त होता है.जो मेरे आगे भक्तिपूर्वक कपूर की आरती करता है,वह मनुष्य मुझ अनंत में प्रवेश कर जाता है. यदि मंत्रहीन और क्रियाहीन मेरा पूजन किया गया है,लेकिन वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है.
कैसे करनी चाहिए आरती : –
पूजा के आरती करने का एक तरीका होता है. पूजा करने के बाद आरती की थाली को खास तरीके से सजाया जाना चाहिए. इसके लिए तांबे, पीतल और चांदी की थाली का उपयोग कर सकते हैं. आरती की थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, ताज़े पुष्प और प्रसाद रखा जाता है. इसके अलाला इसमें दीपक रखा जाता है और उसमें शुद्ध घी या कपूर रखा जाता है. आप आरती के लिए आटे का दीया भी रख सकते हैं .इसे हम पूजा के बाद किसी भी भगवान के सामने घड़ी की दिशा में घुमाते हैं और गोलाकार गति में घुमाएं।
शास्त्रों के अनुसार पूजा समाप्त करने के बाद आरती करने से ही पूजा का पूर्ण फल मिलता है। आरती व्यक्ति के आत्म बल को बढ़ाने में मदद करती है। परिवार के साथ मिलकर की गई आरती लोगों के बीच सामंजस्य की बढ़ाती है। आरती के दौरान जब शंख और घंटे की ध्वनि होती है तब चारों तरफ का वातावरण स्वच्छ हो जाता है और आस-पास के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।
माना जाता है कि जिस घर में प्रतिदिन आरती की जाती है वहां के वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है। ऐसी जगहें सकारात्मकता से भरी होती हैं. इससे जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और पूजा का पूरा फल मिलता है आरती किसी भी व्यक्ति के मानसिक तनाव को दूर करती है। आरती के दौरान जब कपूर और घी का दीपक जलाते हैं तब कीटाणु नष्ट होते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती है। आरती व्यक्ति का ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है जिससे मानसिक शांति मिलती है। आरती करने से मन पवित्र और तन स्वस्थ रहता है। इसी वजह से शास्त्रों में पूजा के बाद आरती को महत्वपूर्ण बताया गया है।