इस बार होलिका दहन 13 मार्च को होगा और रंग वाली होली 14 मार्च को खेली जाएगी. होली से ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता हैं और इस बार होलाष्टक सात मार्च से शुरू होगा। इस दौरान विवाह, शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. 13 मार्च को होलाष्टक समाप्त हो जायेगा और इस दिन होलिका दहन भी होगा।
होलाष्टक का महत्व :
होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत होली के ठीक आठ दिन पूर्व हो जाती है. इस काल का विशेष महत्व होता है. इसी में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. होलाष्टक के विषय में कई धार्मिक मान्यताएं है. शिव पुराण के अनुसार, कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर शिव जी की तपस्या को भंग कर दिया था इसलिए शिवजी ने कामदेव को भस्म दिया था. प्रेम के देवता के भस्म हो जाने से पूरी दुनिया में शोक और हाहाकार मच गया था कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से अपने पति कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। महादेव ने प्रसन्न होकर कामदेव को जीवन दान दिया था। कामदेव फाल्गुन माह के अष्टमी तिथि को भस्म हुए थे और पूर्णिमा तिथि को पुनर्जीवित हुए थे। इस वजह से होलाष्टक के आठों दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते। इस काल में हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं. इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किया जाता हैं. इसलिए वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है परन्तु जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले कार्य इसमें किए जा सकते हैं.
होलाष्टक में कौन से कार्य वर्जित हैं :
होलाष्टक के दौरान विवाह, मुंडन, नामकरण और गृह प्रवेश समेत कोई भी शुभ संस्कार नहीं किए जाते हैं. होलाष्टक के समय नए घर के निर्माण का आरंभ नहीं करना चाहिए. होलाष्टक के दौरान सोना, चांदी, संपत्ति और वाहन नहीं खरीदना चाहिए. होलाष्टक के समय नए वयवसाय की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।
ऐसे मनाएं होलाष्टक :
होलाष्टक के दिनों में ही संवत और होलिका की प्रतीक लकड़ी या डंडे को गाड़ा जाता है. इस समय में अलग-अलग दिन अलग-अलग चीजों से होली खेलते हैं. पूरे समय में शिवजी या कृष्ण जी की उपासना की जाती है. होलाष्टक में हनुमान चालीसा का पाठ करें. विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय का जाप करें, जिससे घर में शांति और सकारात्मक ऊर्जा बानी रहती है. गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें. ग्रह शांति के लिए पूजा करवा सकते हैं. इससे पीड़ा देने वाले ग्रहों से शांति मिलती है।