जगन्नाथपुरी की रथयात्रा दुनिया की सबसे भव्य और आध्यात्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है। लेकिन इस महापर्व से पहले हर साल एक रहस्यमयी परंपरा निभाई जाती है भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा स्नान पूर्णिमा के दिन से अगले 15 दिनों तक “बीमार” हो जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। इस समय को ‘अनसर काल’ कहा जाता है। मंदिर के पट बंद हो जाते हैं और किसी भी भक्त को भगवान के दर्शन की अनुमति नहीं होती। लेकिन सवाल उठता है आखिर भगवान हर साल बीमार क्यों पड़ते हैं?
इस सवाल का जवाब एक अनोखी और भावुक कथा में छिपा है भगवान जगन्नाथ और उनके परम भक्त माधवदास की मित्रता में।
कौन थे भक्त माधवदास?
माधवदास एक साधारण, निश्छल और निष्कपट व्यक्ति थे, जो सांसारिक मोह से दूर भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा था। जब उनकी पत्नी भी बीमारी के कारण मृत्युशैया पर थीं, तब उन्होंने माधवदास से कहा “पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ की शरण में जाना, क्योंकि उनसे ज्यादा तुमसे कोई प्रेम नहीं करेगा।”
भगवान के हाथों से प्रसाद पाने की जिद
पुरी पहुंचने के बाद माधवदास मंदिर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और साफ कह दिया कि वे केवल भगवान जगन्नाथ के हाथों से ही प्रसाद लेंगे। मंदिर के पुजारियों ने समझाया, पर वे टस से मस नहीं हुए। उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया और अपने भगवान से मिलने की प्रतीक्षा करने लगे।
भगवान जगन्नाथ को झुकना पड़ा भक्त के प्रेम के आगे
माधवदास की सच्ची भक्ति और प्रेम को देखकर भगवान जगन्नाथ को स्वयं भक्त के पास आना पड़ा—रूप बदलकर। लेकिन माधवदास ने उस अन्न को भी यह कहकर ठुकरा दिया कि अगर भगवान स्वयं नहीं आए, तो वे कुछ नहीं खाएंगे। इस पर भगवान ने अपने असली रूप में आकर माधवदास को दर्शन दिए और अपने हाथों से अन्न खिलाया।
भक्त की बीमारी, भगवान का व्रत
समय के साथ माधवदास वृद्ध हुए और बीमार पड़ गए। जब पीड़ा असहनीय हो गई, तब उन्होंने भगवान से शिकायत की। इस पर भगवान ने कहा, “तुम्हारी इस बीमारी के केवल 15 दिन शेष हैं। इसके बाद तुम्हें मोक्ष मिलेगा।” लेकिन माधवदास की पीड़ा देखकर भगवान का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने कहा—”ये 15 दिन की पीड़ा मैं अपने ऊपर लेता हूं, मित्र!”
यही कारण है कि हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा से अगले 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ते हैं और एकांतवास में रहते हैं अपने प्रिय भक्त की पीड़ा को याद करते हुए।
इस परंपरा के पीछे छिपा है दिव्य प्रेम का संदेश
जगन्नाथ भगवान का यह रूप दिखाता है कि वे केवल ईश्वर ही नहीं, एक सच्चे मित्र और प्रेम करने वाले हैं। यह परंपरा हर साल हमें यह याद दिलाती है कि ईश्वर अपने भक्तों के कष्ट भी स्वयं सह लेते हैं अगर भक्ति निष्कलंक हो। इसलिए कहा जाता है ‘दुनिया में भगवान से बड़ा प्रेम करने वाला कोई नहीं हो सकता।’