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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > देव सूर्य मंदिर: जहाँ सूर्य देव त्रिदेव रूप में विराजमान हैं ।
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देव सूर्य मंदिर: जहाँ सूर्य देव त्रिदेव रूप में विराजमान हैं ।

दिव्यसुधा
Last updated: May 31, 2025 3:51 pm
दिव्यसुधा
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हिंदू धर्म में सूर्य देव को पंचदेवों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है, जो मान-सम्मान, स्वास्थ्य, और सफलता के कारक है। सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं और सालभर में सभी बारह राशियों का चक्र पूरा करते हैं।

सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं और सालभर में सभी बारह राशियों का चक्र पूरा करते हैं। वैसे तो देश में सूर्यदेव के बहुत से मंदिर स्थित है। लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित सूर्यदेव मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। यह मंदिर काले पत्थरों को तराशकर बनाया गया है, जिसकी शिल्पकला बेहद आकर्षक और देखने लायक है। मंदिर की ऊंचाई लगभग 100 फीट है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने किया था। कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

राजा ऐल ने करवाया था इस मंदिर का निर्माण

सूर्यदेव मंदिर से जुड़ी एक रोचक और प्राचीन शिलालेखों से पता चलता कि त्रेता युग में ऐल नामक राजा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।  वह कुष्ठ रोग से ग्रसित थे एक दिन वह शिकार खेलते हुए जंगल में देव स्थान पर पहुंचे। प्यास लगने पर उन्होंने वहां के एक तालाब से पानी पिया। तो राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ रोग ठीक हो गया, फिर राजा ने उसी तालाब में स्नान किया और उनका पूरा शरीर कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया। राजा को उसी रात सपना आया कि जिस तालाब में उन्होंने स्नान किया, उसके भीतर भगवान सूर्य की तीन स्वरूपों वाली प्रतिमा छिपी हुई है। जब राजा ने तालाब खुदवाया, तो वहां से ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएं प्राप्त हुईं। उन्होंने इन प्रतिमाओं की विधिपूर्वक स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया। यही मंदिर आज देव सूर्य मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

पश्चिममुखी द्वार की रहस्यमयी कथा

देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जो इसे खास बनाता है। कहा जाता है कि औरंगजेब जब मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचा, तो यहां के पुजारियों ने उसे रोका। औरंगजेब ने चुनौती दी कि अगर मंदिर में सच्चाई है, तो उसका द्वार रातों-रात पूर्व से पश्चिम हो जाए। चमत्कारिक रूप से, रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर मुड़ गया। यह देखकर औरंगजेब चौंक गया और मंदिर को नष्ट नहीं किया।

मान्यता है कि पहले देवासुर संग्राम में जब देवता असुरों से हार गए, तो देव माता अदिति ने देव सूर्य मंदिर में जाकर छठी मैया की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें एक तेजस्वी और सर्वगुण संपन्न पुत्र का वरदान दिया। इसके बाद अदिति के पुत्र आदित्य (भगवान सूर्य) का जन्म हुआ, जिन्होंने असुरों को पराजित कर देवताओं को विजय दिलाई। यह कथा छठी मैया की महिमा और देव सूर्य मंदिर की पवित्रता को दर्शाती है।

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