Written By : Ekta Mishra
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मां छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह शुभ तिथि 11 मई को पड़ रही है। मां छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में से एक हैं और उनका स्वरूप अत्यंत उग्र, लेकिन दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। इस दिन भक्त विधिवत व्रत रखते हैं और मां छिन्नमस्ता की पूजा कर उनसे शक्ति, साहस और आत्मिक जागरण की कामना करते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से की गई साधना से मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की सभी बाधाएं दूर करती हैं।
मां को क्यों कहा जाता है प्रचंड चंडिका
देश के कई हिस्सों में मां छिन्नमस्ता को प्रचंड चंडिका के नाम से भी पूजा जाता है। मान्यता है कि जो भक्त इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां की कृपा से जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है और साहस, शक्ति और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है।
तंत्र और मंत्र दोनों से होती हैं प्रसन्न
देवी छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में छठवें स्थान पर हैं और उनका स्वरूप अत्यंत भयंकर तथा रहस्यमयी माना जाता है। उन्हें एक उग्र देवी के रूप में दर्शाया गया है, जो आत्मबलिदान और चेतना की उच्च अवस्था का प्रतीक हैं। इसी कारण इनकी उपासना मंत्र और तंत्र दोनों विधियों से की जाती है। मुख्य रूप से तांत्रिक, योगी और अघोरी साधक उन्हें अपनी इष्ट देवी मानते हैं और गुप्त साधनाओं में मां छिन्नमस्ता की आराधना करते हैं। माना जाता है कि इनकी साधना से साधक को अद्भुत शक्तियां, आत्मबल और गहरी आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है।
मां काली का अवतार
देवी छिन्नमस्ता को एक अत्यंत शक्तिशाली और उग्र रूप वाली देवी के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे देवी काली का एक स्वरूप हैं और कबंध शिव की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनका रूप भले ही भयानक प्रतीत होता हो, लेकिन वे उतनी ही करुणामयी और जीवनदायिनी भी हैं। मां छिन्नमस्ता अपने भक्तों की सभी बाधाओं और विपत्तियों से रक्षा करती हैं। जो भी श्रद्धा और भक्ति से उनकी उपासना करता है, उसे मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। उनका पूजन साधक को भय, भ्रम और नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है।
छिन्नमस्ता जयंती तिथि 2025
वैदिक कैलेंडर के अनुसार, वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 10 मई को शाम 5:29 बजे शुरू होगी और 11 मई को रात 8:01 बजे तक रहेगी। पंचांग नियमों के अनुसार, किसी भी व्रत या पर्व को उदया तिथि यानी सूर्योदय के समय की तिथि के आधार पर मनाया जाता है। इसी कारण से छिन्नमस्ता जयंती 11 मई 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन भक्तगण मां छिन्नमस्ता की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करके उनसे शक्ति, साहस और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
बन रहे हैं ये शुभ योग
इस बार चतुर्दशी तिथि पर कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है, जिनमें रवि योग और भद्र योग विशेष रूप से शामिल हैं। इन योगों को बहुत लाभकारी और शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन विशेष योगों में देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा के दौरान इन शुभ योगों का लाभ प्राप्त करने से जीवन में समृद्धि, शक्ति और शांति का वास होता है, साथ ही जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। इस दिन मां छिन्नमस्ता की श्रद्धा और भक्ति से की गई पूजा विशेष फलदायक होती है।
छिन्नमस्ता जयंती की पूजा विधि
- छिन्नमस्ता जयंती के दिन देवी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले घर की सफाई करनी चाहिए और फिर पवित्र स्नान करके शुद्धि प्राप्त करनी चाहिए। इसके बाद, साफ और लाल कपड़े पहनकर देवी का ध्यान करें और उपवास की शुरुआत करें।
- पवित्र स्थान पर देवी दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और फिर पूरी विधि-विधान से देवी छिन्नमस्ता की पूजा करें। पूजा के दौरान नीले फूल और माला अर्पित करें, क्योंकि ये देवी को प्रिय हैं। लोभान का विशेष महत्व है, इसलिए इसे जलाकर देवी को अर्पित करें, क्योंकि लोभान देवी को प्रसन्न करता है।
- माँ छिन्नमस्ता को फल, फूल, मिठाई और विशेष रूप से नारियल का भोग अर्पित करें। साथ ही, सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस दिन विशेष रूप से छिन्नमस्ता के मूल मंत्र का जाप किया जाता है:
- “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनियै हम हम फट स्वाहा:”
- इस मंत्र के जाप से देवी की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पूजा से साधक को शक्ति, समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त होती है।
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