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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > Amalaki Ekadashi 2025 : आमलकी एकादशी के दिन क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा
व्रत और त्योहार

Amalaki Ekadashi 2025 : आमलकी एकादशी के दिन क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा

दिव्यसुधा
Last updated: March 8, 2025 8:16 am
दिव्यसुधा
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Amalaki Ekadashi
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हिंदू धर्म में एकादशी की तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है. हर महीने दो एकादशी व्रत पड़ते हैं. इस प्रकार एक वर्ष में एकादशी के 24 व्रत पड़ते हैं. एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित किया गया है. हर एकादशी के व्रत का अपना महत्व और लाभ है. फाल्गुन महीने में पड़ने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी होती है. इसे आमला एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु के व्रत और पूजन का विधान है. आमला एकादशी के दिन विष्णु जी व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है और जीवन के कष्ट और दुख दूर होते हैं। इस दिन विष्णु जी की पूजा के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा होती है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा शुभ मानी गई है। लेकिन इस दिन क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा, आइए इसके बारे में जानते हैं.

कब है आमलकी एकादशी :-

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 9 मार्च को सुबह 7 बजकर 45 मिनट प्रारंभ होगी और एकादशी तिथि का समापन 10 मार्च 2025 को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। हिंदू धर्म में उदया तिथि मानी जाती है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत 10 मार्च को रखा जाएगा. वहीं व्रत के पारण का समय 11 मार्च को प्रातः 6 बजकर 35 मिनट से लेकर 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगा.

कैसे शुरु हुई आंवले की पूजा की परंपरा :

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी को ये जानने की इच्छा हुई कि आखिर वो उत्पन्न कैसे हुए. ये जानने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया. भगवान विष्णु उनके तपस्या से बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी को दर्शन दिए . विष्णु जी को देखकर ब्रह्मा जी भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े. ब्रह्मा जी की आंख से निकले आंसू श्री नारायण के चरणों में गिरे और उससे ही आंवले का पेड़ उत्पन्न हो गया.

इसके बाद श्री नारायण ने ब्रह्मा जी से कहा कि आज से वो आंवले के पेड़ में रहेंगे. जो भी भक्त आंवले के पेड़ की पूजा करेगा, उसको शुभ फल प्राप्त होगा और उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होगी. ये सब फाल्गुन माह की एकादशी के दिन हुआ. तब से ही फाल्गुन माह की एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा की परंपरा शुरू हो गई. इस एकादशी के दिन आंवले की पूजा और परिक्रमा करने से मरने के बाद वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है. वहीं गरुण पुराण में बताया गया है कि इस दिन माता लक्ष्मी के आंसुओं के आंवले का पेड़ उत्पन्न हुआ. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, आमलकी एकादशी के दिन जो भी आंवले के पेड़ की पूजा करता है उसके घर में धन का भंडार भरा रहता है. साथ ही उसे सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है.

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