हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि योग आखिर शुरू कहां से हुआ था? सिर्फ आसन और कसरत नहीं, योग एक ऐसी आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो शरीर, मन और आत्मा को जोड़ती है। यह न सिर्फ तन को स्वस्थ बनाता है, बल्कि मन को भी शांत और सतर्क करता है।
योग: शब्द से साधना तक
‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज’ धातु से निकला है, जिसका अर्थ है जोड़ना या एकत्र करना। योग सिर्फ हिंदू धर्म तक सीमित नहीं रहा—यह जैन, बौद्ध, और दुनिया के कई हिस्सों जैसे चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण एशिया, और अब तो पूरे विश्व में फैल चुका है। आज के समय में योग एक ग्लोबल हेल्थ मूवमेंट बन चुका है।
योग का इतिहास: जब कोई धर्म नहीं था
ऐसा माना जाता है कि योग की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, जब न कोई धर्म था, न विश्वास। आदियोगी शिव को योग का प्रथम प्रवर्तक माना जाता है, जिन्होंने सप्तऋषियों को योग विद्या प्रदान की थी। ये ऋषि इस गूढ़ ज्ञान को लेकर विभिन्न महाद्वीपों में गए, लेकिन भारत में इसे सबसे अधिक गहराई और विस्तार मिला।
सिंधु सभ्यता से लेकर उपनिषदों तक
योग की प्राचीनता के प्रमाण सिंधु घाटी की मुहरों और जीवाश्मों में भी मिलते हैं, जिनमें योगासन में बैठे व्यक्ति दर्शाए गए हैं। योग की झलक हमें वैदिक ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, बौद्ध और जैन परंपराओं में भी देखने को मिलती है। यह सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली रही है।
पतंजलि का योगदान: योग को मिला नया आकार
हालांकि योग की परंपरा बहुत पुरानी है, लेकिन महर्षि पतंजलि ने इसे पहली बार व्यवस्थित रूप दिया। उन्होंने अपने योग सूत्रों में योग की व्याख्या की और इसे दर्शन के रूप में स्थापित किया। उनके बाद भी अनेक योग गुरुओं और ऋषियों ने इसके प्रचार-प्रसार और विकास में योगदान दिया।
सूर्य नमस्कार और प्राचीन अनुष्ठान
वैदिक काल में सूर्य उपासना को प्रमुखता दी गई थी, जिससे सूर्य नमस्कार जैसी परंपराएं जन्मी। प्राणायाम और ध्यान भी वैदिक यज्ञ और अनुष्ठानों का हिस्सा रहे हैं। उस समय योग सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, आध्यात्मिक साधना का हिस्सा हुआ करता था।
धर्म से परे है योग
आज भी कई लोग यह सोचते हैं कि योग किसी विशेष धर्म से जुड़ा है। लेकिन सच्चाई यह है कि योग किसी धर्म, जाति या संप्रदाय तक सीमित नहीं है। यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य है शरीर, मन और आत्मा का संतुलन। कोई भी व्यक्ति—चाहे किसी भी पंथ या देश से हो—योग के अभ्यास से लाभ उठा सकता है।
आधुनिक जीवन में योग का महत्व
- प्राणायाम: श्वास की शक्ति
प्राचीन भारत की यह तकनीक आज वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि यह तनाव, चिंता और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं में राहत देती है। प्राणायाम के ज़रिए हम न सिर्फ अपनी सांसों पर नियंत्रण पाते हैं, बल्कि दिमाग में स्पष्टता और संतुलन भी आता है। - ध्यान: मन की दवा
आज की भागदौड़ और तनाव भरी जिंदगी में ध्यान यानी मेडिटेशन मन को स्थिर करने का सबसे प्रभावशाली उपाय है। यह नींद से भी अधिक गहराई वाला आराम देता है, एकाग्रता बढ़ाता है और आतंरिक ऊर्जा को पुनर्जीवित करता है।
योग दिवस: एक वैश्विक पहल
भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया, जिसकी शुरुआत वर्ष 2015 से हुई। तब से हर साल करोड़ों लोग इस दिन एक साथ योग करते हैं—चाहे वो पार्क हो, स्कूल, ऑफिस या घर। यह न केवल एक कार्यक्रम बन चुका है, बल्कि मानवता को जोड़ने का एक आध्यात्मिक माध्यम बन चुका है।
योग सिर्फ व्यायाम नहीं, जीवन दर्शन है
आज जब पूरा विश्व तनाव, बीमारी और असंतुलन से जूझ रहा है, तब योग हमें सिखाता है—कैसे जियें, न कि सिर्फ कैसे बचें। योग एक ऐसी कुंजी है, जो हमें भीतर से मजबूत बनाकर बाहर की दुनिया में संतुलन सिखाती है।
तो इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आप भी शुरुआत करें—चाहे 10 मिनट का प्राणायाम हो या कुछ देर का ध्यान—क्योंकि “जो खुद से जुड़ता है, वही दुनिया को बेहतर बनाता है।”