भगवान परशुराम, विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं। परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर पुत्र रूप में हुआ था। ‘परशुराम’ का अर्थ है कुल्हाड़ी धारण करने वाला राम। उन्होंने धरती पर फैले अधर्म और अत्याचार को मिटाने के लिए 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था।भगवान परशुराम को अमर माना गया है और यह भी विश्वास है कि कलियुग के अंत में वे भगवान कल्कि को युद्ध विद्या सिखाएंगे। वे शक्ति, न्याय और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं। भगवान शिव ने उन्हें एक विशेष अस्त्र फरसा (कुल्हाड़ी) प्रदान की थी, जिससे उनका नाम ‘परशुराम’ पड़ा।परशुराम जयंती के दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान परशुराम की पूजा करते हैं और उनकी कथाओं का पाठ करते हैं। कई जगहों पर शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं। इस दिन को नए काम शुरू करने और दान-पुण्य करने के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है।
कब है? परशुराम जयंती
पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 अप्रैल 2025 को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी और 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर खत्म होगी। कहते है भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए उनकी जयंती 29 अप्रैल दिन मंगलवार 2025 को मनाई जाएगी।
परशुराम जयंती का महत्व
भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। कहा जाता है परशुराम पृथ्वी को अत्याचारी शासकों से मुक्त करने के लिए जन्म लिया था। वे धर्म, न्याय और साहस के प्रतीक हैं। उनकी पूजा करने से आत्मविश्वास, निर्भयता और शांति मिलती है। भगवान परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों से युक्त थे। वे शक्ति और ज्ञान का अद्भुत मेल दिखाते हैं। उनकी भक्ति से हमें ज्ञान, शक्ति और न्याय की प्रेरणा मिलती है। मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं और आज भी तपस्या कर रहे हैं। उनकी जयंती अक्षय तृतीया के साथ मनाई जाती है, जो बेहद शुभ तिथि मानी जाती है। इस दिन किया गया दान और पुण्य कार्य कभी खत्म नहीं होता। इस दिन दान करने और पितरों के लिए तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। भगवान परशुराम की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय और जीवन में सुरक्षा मिलती है।
परशुराम जयंती की पूजा विधि
परशुराम जयंती के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। फिर साफ वस्त्र पहनकर भगवान परशुराम का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें। इस दिन व्रत रखने की परंपरा है। पूजा के लिए जल से भरा एक कलश, फूल, अक्षत , चंदन, रोली, दीपक, गंगाजल, तुलसी पत्र, नारियल, मिठाई और पंचामृत तैयार करें। घर के मंदिर में भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापित करें। दीपक जला करके पूजा की शुरुआत करें। विष्णु जी या परशुराम जी के मंत्रों का जाप करें। इसके पश्चात आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के अंत में भगवान परशुराम और भगवान विष्णु की आरती करें। अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को दान दें। खासतौर पर इस दिन अन्न, वस्त्र, तांबा और चंदन का दान करना शुभ माना जाता है।