सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। सूर्य का शाब्दिक अर्थ है ‘सर्व प्रेरक’ । यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने “चक्षो सूर्यो जायत” कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। सूर्य देव को दिनकर, रश्मि मते, भुवनेश्वर, प्रभाकर, सविता, भानू, दिवाकर,आदिदेव, रवि आदि नामों से भी पुकारा जाता है। सूर्य देव को भगवान के रूप में पूजा जाता है, जो संजीवनी शक्ति, ऊर्जा, और जीवन प्रदान करते हैं। उन्हें सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार होकर आकाश में यात्रा करते हुए चित्रित किया जाता है, जो सात रंगों या सात दिनों का प्रतीक होते हैं।
सूर्यदेव का जन्म प्रजापति दक्ष की कन्या अदिति के गर्भ से, ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में हुआ। अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण, सूर्यदेव को आदित्य भी कहा जाता है. सूर्य देव की दो पत्नियां संज्ञा और छाया हैं. सूर्य देव के कई पुत्र थे, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम यमराज, शनिदेव, वैवस्वत मनु,अश्विनी कुमार और सुग्रीव हैं. यमराज सूर्य देव के सबसे बड़े पुत्र और मृत्यु के देवता. शनिदेव सूर्य देव के पुत्र और न्याय के देवता. वैवस्वत मनु सूर्य देव के पुत्र और मनुस्मृति के रचयिता. अश्विनी कुमार सूर्य देव के पुत्र, जो जुड़वा भाई हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं. सुग्रीव सूर्य देव के पुत्र, जो वानर राजा थे.
सूर्य देव की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, समृद्धि और सफलता प्राप्ति की आशा की जाती है। हिन्दू धर्म में सूर्य देव को जीवनदाता, सुखदाता और उर्जा का स्रोत माना जाता है। उनका मुख्य वाहन रथ है, जिसे सात घोड़े खींचते हैं। सूर्य देव के पूजन के लिए खास तौर पर ‘अदित्य हृदय स्तोत्र’ का पाठ किया जाता है, जो उनके प्रति भक्ति और आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। सूर्य ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिये अपने बजन के बराबर के गेंहूं, लाल और पीले मिले हुए रंग के वस्त्र, लाल मिठाई, सोने के रबे, कपिला गाय, गुड और तांबा धातु, श्रद्धा पूर्वक किसी गरीब ब्राहमण को बुलाकर विधि विधान से संकल्प पूर्वक दान करना चाहिये।
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