सनातन धर्म में चतुर्थी तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. विनायक चतुर्थी का दिन भगवान गणेश को समर्पित हैं. कहते हैं इस दिन विघ्न हर्ता श्री गणेश की विधिवत पूजा और व्रत करने से जातकों को बप्पा का आशीर्वाद प्राप्त होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार फागुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन विनायक चतुर्दशी व्रत रखा जाता है. विनायक चतुर्दशी के शुभ मौके पर भगवान गणेश की पूजा आराधना करने से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलती है. वैसे हर महीने एक बार विनायक चतुर्दशी का व्रत भी रखा जाता है। वहीं इस जीवन का समस्त बाधाओं और आर्थिक तंगी से भी मुक्ति मिलती है.
शुभ मुहूर्त :-
हिंदू पंचांग के अनुसार फागुन माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 2 मार्च को रात्रि 9:01 से शुरू होकर 3 मार्च को शाम 6:02 पर समाप्त होगा. उदया तिथि के अनुसार विनायक चतुर्दशी का व्रत सोमवार के दिन 3 मार्च को रखा जाएगा, जिसमें पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:05 से लेकर 5:55 तक रहेगा. तो वहीं अभिजीत मुहूर्त 12:10 से लेकर 12:56 तक रहेगा तथा विजय मुहूर्त 2:30 से लेकर 5:16 तक रहेगा. धार्मिक मान्यता के अनुसार शुभ मुहूर्त में पूजा करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है.
पूजा विधि :-
विनायक चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करनी चाहिए. जलाभिषेक करना चाहिए. भगवान गणेश को पुष्प फल और पीला चंदन अर्पित करना चाहिए. तिल का लड्डू अथवा मोदक का भोग लगाना चाहिए. भगवान गणेश की अमोघ मित्रों का जाप करना चाहिए और उसके बाद पूरी श्रद्धा के साथ गणेश जी की आरती करनी चाहिए। गणेशजी को 21 दूर्वा चढ़ाएं। फिर लड्डुओं का भी भोग लगाएं। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। इसके बाद खुद भोजन कर सकते हैं।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा :-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माँ पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठकर चौपड़ खेल रहे थे। शिव जी ने खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक पुतले का निर्माण किया और उसकी प्रतिष्ठा कर दी। भगवान महादेव ने उस बालक से कहा कि वह खेल के बाद विजेता का फैसला करेगा। महादेव और देवी पार्वती खेलने लगे और देवी पार्वती जीत गईं। अंत में बालक ने महादेव को विजेता घोषित किया। यह सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को विकलांग बने रहने का श्राप दे दिया।
इसके बाद बालक ने देवी पार्वती से माफी मांगी और कहा कि मुझसे गलती हो गयी, जिसके बाद देवी पार्वती ने कहा कि श्राप को वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन एक उपाय है। देवी पार्वती ने कहा कि नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने आएंगी और तुम्हें उनके बताए अनुसार व्रत करना होगा, जिससे तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे। बालक कई वर्षों तक श्राप से पीड़ित रहा और एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने आईं। बालक ने उनसे गणेश जी की व्रत की विधि पूछी। बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश के निमित्त व्रत किया, जिससे भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा।
बालक ने भगवान गणेश से प्रार्थना की और कहा कि हे विनायक, मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं कैलाश पर्वत तक पैदल चल सकूं। भगवान गणेश ने बालक को आशीर्वाद दिया। बाद में बालक ने श्राप से मुक्त होने की कथा कैलाश पर्वत पर महादेव को सुनाई। चौपड़ के दिनों से ही माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट हो गई थीं। बालक की सलाह के अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश के लिए व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से माता पार्वती का महादेव के प्रति क्रोध समाप्त हो गया।