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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर, 100 एकड़ में बनी स्वर्ण से सजा श्री लक्ष्मी नारायणी धाम
मंदिर

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर, 100 एकड़ में बनी स्वर्ण से सजा श्री लक्ष्मी नारायणी धाम

दिव्यसुधा
Last updated: April 23, 2025 6:09 am
दिव्यसुधा
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श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर
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भारत के हिन्दू मंदिर सिर्फ पूजा-पाठ और भक्ति का स्थान नहीं होते, बल्कि ये हमारे संस्कृति, कला और वास्तुकला की भी अनमोल धरोहर हैं। इन मंदिरों की विशालता, सुंदरता और निर्माण शैली को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। यह अद्भुत मंदिर वेल्लोर शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित है, एक जगह जिसे थिरुमलाई कोडी कहा जाता है। यहाँ बना है ‘श्रीपुरम आध्यात्मिक केंद्र’, जिसके बीचों-बीच स्थित है शुद्ध सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर। जिसे दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है।

मंदिर का संरचना और निर्माण

भारत के दूसरे मंदिरों की तरह भी इस स्वर्ण मंदिर का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है यह मंदिर भले ही ऐतिहासिक रूप से बहुत पुराना न हो, लेकिन इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा और सुनहरी चमक ने इसे हिंदू श्रद्धालुओं का प्रिय तीर्थ बना दिया है। इस मंदिर का निर्माण वेल्लोर के चैरिटेबल ट्रस्ट श्री नारायणी पीडम द्वारा कराया गया है। इस ट्रस्ट की प्रमुख हैं आध्यात्मिक गुरु श्री शक्ति अम्मा या नारायणी अम्मा।

यह मंदिर वेल्लोर शहर से लगभग 7 किलोमीटर दूर, पहाड़ियों की तलहटी में 100 एकड़ में फैले एक सुंदर और शांत परिसर में स्थित है, जिसे श्रीपुरम आध्यात्मिक केंद्र कहा जाता है। यहाँ का वातावरण शांति से भरपूर और आत्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत होता है। इस मंदिर को बनाने में लगभग 15,000 किलोग्राम शुद्ध सोना प्रयोग किया गया है। मंदिर को बनाने के लिए पहले सोने को पतली शीट्स में बदला गया, फिर उन शीट्स को तांबे की प्लेटों पर सावधानीपूर्वक चढ़ाया गया। और साथ ही कारीगरों द्वारा बड़ी ही सूक्ष्मता से हर हिस्से पर सूक्ष्म और अद्भुत नक्काशी की गयी है। जिससे पूरा मंदिर एक कलात्मक स्वर्ण रचना बन गया है।

श्रीपुरम मंदिर तक पहुँचने का रास्ता एक तारों की आकृति में बना है, जिसकी लंबाई लगभग 1.8 किलोमीटर है। और जिस पर चलकर मंदिर पहुँचा जा सकता है। इस रास्ते पर चलते हुए भक्तों को धर्म, वेद, उपनिषद और शास्त्रों से जुड़े सुविचार और उपदेश पढ़ने को मिलते हैं। मंदिर परिसर में स्थित है एक 27 फुट ऊँची दीपमालिका, जो शाम के समय जब प्रज्वलित की जाती है, तो पूरा वातावरण देवत्व और ऊर्जा से भर उठता है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो माता लक्ष्मी स्वयं इस स्थान पर विराजमान हो गई हों। श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य सन् 2000 में शुरू हुआ था। वर्षों की मेहनत, सेवा और समर्पण के बाद 24 अगस्त को इसे श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। तब से यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं का विश्वास और भक्ति का केंद्र बन गया है।

मंदिर में मुख्य रूप से माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। जिन्हें धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। वे घड़ी की सुई की दिशा में चलते हुए पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हैं, जो हिंदू परंपरा में शुभ और ऊर्जा वर्धक माना गया है। जहाँ से मंदिर के अंदर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन करने के बाद फिर पूर्व में आकर दक्षिण से ही बाहर आ जाते हैं। दरअसल मंदिर का एक-एक भाग वैदिक नियमों के अनुसार बनाया गया है। श्रीपुरम में ही एक सामान्य अस्पताल और शोध केंद्र भी है।

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