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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > श्री सत्यनारायण व्रत कथा, प्रथम – अध्याय
व्रत और त्योहार

श्री सत्यनारायण व्रत कथा, प्रथम – अध्याय

दिव्यसुधा
Last updated: May 2, 2025 5:52 pm
दिव्यसुधा
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भगवान सत्यनारायण
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सत्यनारायण भगवान की पूजा का मतलब है कि हम सत्य को भगवान विष्णु के रूप में मानकर उनकी पूजा करते हैं। इसका भाव यह है कि इस संसार में केवल भगवान नारायण ही सच्चे हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में होती है और सत्यनारायण का रूप खास तौर पर इस कथा में बताया गया है। इस कथा में लगभग 170 संस्कृत श्लोक हैं, जो पाँच अध्यायों में बँटे हैं।

कथा में दो बातें मुख्य रूप से सिखाई गई हैं – पहली, पूजा का संकल्प लेकर उसे भूलना और दूसरी, प्रसाद का अनादर करना। कथा में छोटी-छोटी कहानियों के जरिये समझाया गया है कि अगर हम सत्य का पालन नहीं करते तो जीवन में दुख और कठिनाइयाँ आती हैं। भगवान नाराज होकर धन और परिवार के सुख से भी वंचित कर सकते हैं। इसलिए श्रद्धा और निष्ठा से सत्य का पालन करना जरूरी है। यह कथा पूर्णिमा के दिन और कुछ खास पर्वों पर घरों में पढ़ी जाती है।

सत्यनारायण पूजा में केले के पत्ते, फल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम और दूर्वा का उपयोग होता है। पंचामृत दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल मिलाकर बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में फल, मिठाई और पंजीरी (भुना आटा और चीनी मिलाकर बना हुआ) चढ़ाई जाती है।

एक समय की बात है। नैषिरण्य तीर्थ में शौनक और अन्य 88 हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा, “हे प्रभु! इस कलियुग में जब लोग वेदों के ज्ञान से दूर होते जा रहे हैं, तो उन्हें भगवान की भक्ति कैसे मिलेगी? और उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कृपा करके ऐसा कोई आसान उपाय बताइए, जिससे थोड़े समय में पुण्य भी मिल जाए और मनचाही इच्छा भी पूरी हो जाए। हम इस तरह की कोई सरल और पुण्य देने वाली कथा सुनना चाहते हैं।”

सभी शास्त्रों के ज्ञाता सूतजी ने कहा, “हे पूज्य ऋषियों! आपने जीवों के भले के लिए बहुत अच्छा प्रश्न किया है। इसलिए मैं आप सबको एक बहुत ही श्रेष्ठ व्रत के बारे में बताऊंगा। यह वही व्रत है जिसे नारदजी ने भगवान लक्ष्मीनारायण से पूछा था और फिर भगवान ने नारदजी को बताया था। आप सभी इसे ध्यान से सुनिए।”

एक समय की बात है, योगीराज नारदजी सबके भले की इच्छा लेकर अलग-अलग लोकों में घूमते हुए पृथ्वी लोक (मृत्युलोक) आ पहुँचे। यहाँ उन्होंने देखा कि लोग अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर अपने कर्मों के कारण बहुत दुख भोग रहे हैं। यह देखकर नारदजी सोचने लगे कि ऐसा कौन-सा उपाय किया जाए जिससे इंसानों के दुख हमेशा के लिए खत्म हो जाएँ। यही सोचते हुए वे विष्णुलोक गए और वहाँ भगवान नारायण की स्तुति करने लगे। भगवान नारायण के हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल था और उनके गले में एक सुंदर वरमाला थी।

नारदजी भगवान की स्तुति करते हुए बोले, “हे प्रभु! आप असीम शक्ति वाले हैं। मन और वाणी भी आपको पूरी तरह नहीं समझ सकते। आपका ना कोई आदि है, ना मध्य और ना ही अंत। आप निर्गुण होकर भी सृष्टि के कारण हैं और भक्तों के दुख दूर करने वाले हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।”

नारदजी की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु बोले, “हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में जो भी बात है, निःसंकोच बताइए। आप किस काम से आए हैं?” तब नारदजी ने कहा, “हे प्रभु! मृत्युलोक में लोग अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर अपने कर्मों के कारण बहुत दुख झेल रहे हैं। यदि आप मुझ पर दया करते हैं तो कृपा करके बताइए कि वे लोग थोड़े प्रयास से अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं।”

भगवान श्रीहरि बोले, “हे नारद! तुमने मनुष्यों की भलाई के लिए बहुत अच्छा सवाल किया है। अब मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बताता हूँ जिससे इंसान मोह से मुक्त हो सकता है। स्वर्ग और पृथ्वी दोनों जगहों में एक बहुत ही श्रेष्ठ और दुर्लभ व्रत है, जो बहुत पुण्य देने वाला है। आज मैं प्रेमपूर्वक तुम्हें बताता हूँ कि सत्यनारायण भगवान का व्रत अगर सही विधि से किया जाए, तो मनुष्य इस जीवन में सुख पाता है और मरने के बाद मोक्ष भी प्राप्त करता है।”

नारदजी ने भगवान श्रीहरि से पूछा, “हे प्रभु! इस व्रत का क्या फल है? इसका विधान (विधि) क्या है? यह व्रत किसने किया था और इसे किस दिन करना चाहिए? कृपया सभी बातों को विस्तार से बताएं।”

भगवान श्रीहरि ने नारदजी से कहा, “यह व्रत दुःख और शोक को दूर करने वाला है और यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है। मनुष्य को भक्ति और श्रद्धा के साथ शाम को श्री सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान ब्राह्मणों और परिवार के लोगों के साथ मिलकर धर्मपूर्वक पूजा करें। भक्ति भाव से नैवेद्य (प्रसाद) तैयार करें, जिसमें केले का फल, घी, दूध, और गेहूँ का आटा हो। अगर गेहूँ का आटा नहीं मिले तो साठी का आटा, शक्कर और गुड़ लेकर इन सभी खाद्य पदार्थों को मिलाकर भगवान को भोग अर्पित करें।”

भगवान श्रीहरि ने कहा, “ब्राह्मणों और परिवार के अन्य लोगों को भोजन कराएं, फिर स्वयं भोजन करें। भजन और कीर्तन करते हुए भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं। इस तरह से सत्यनारायण भगवान का व्रत करने से मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। यह व्रत कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का एक सरल उपाय है।”

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण॥

ये भी पढ़ें –

श्री सत्यनारायण व्रत कथा, द्वितीय – अध्याय

श्री सत्यनारायण व्रत कथा, तृतीय – अध्याय

श्री सत्यनारायण व्रत कथा, चतुर्थ- अध्याय

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