इंडोनेशिया देश के जावा शहर के पास योग्यकर्ता शहर से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक विशाल प्रम्बनन शिव मंदिर है। इस प्रम्बनन शिव मंदिर को वहां की स्थानीय भाषा में रोरो जोंग्गरंग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 10वीं शताब्दी में बना यह शिव मंदिर दुनिया भर में प्रम्बनन शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां भगवान शिव के साथ-साथ कई देवी-देवताओं को अलग-अलग नामों से पूजा जाता है। यहाँ पर छोटे-बड़े मंदिरों को मिलाकर कुल 240 मंदिरो का समूह है जिनमे से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं किंतु तीन मुख्य मंदिर जो कि त्रिदेव को समर्पित हैं, वे आज पुनरुद्धार के बाद जीवंत अवस्था में हैं। प्रम्बनन शिव मंदिर को एक वर्ग के आकर में बनाया गया है जिसमे क्रमानुसार सभी मंदिरों को बनाया गया हैं। इसमें सबसे प्रमुख और ऊँचा मंदिर भगवान शिव का है, इसलिए इसे शिव मंदिर या शिव गृह भी कहा जाता है। यह के मुख्य मंदिरों में भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के मंदिर, तीनों वाहनों के मंदिर, दो अपित मंदिर आते हैं।
तीन त्रिमूर्ति मंदिर
यहाँ सबसे पहले ३ प्रमुख मंदिर है जो त्रिमूर्ति को समर्पित है। और यहाँ का सबसे बड़ा मंदिर शिव जी को समर्पित है प्रम्बनन शिव मंदिर के एकदम केंद्र में स्थापित हैं। यह मंदिर सभी मंदिरों में सबसे ऊँचा व बड़ा है,और अन्य दो मुख्य मंदिर भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा को समर्पित हैं। ब्रह्मा जी का मंदिर शिवजी के दक्षिण में तथा भगवान विष्णु का मंदिर शिवजी के उत्तर में स्थित है। इन तीनों मंदिरों का मुख सूर्योदय की दिशा में अर्थात पूर्व दिशा में हैं।
तीन वाहन मंदिर
इसके बाद है तीन वहां मंदिर जो इन तीन मंदिरों के सामने बने हुए है यह तीन वाहन मंदिर भगवान भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव के वाहनों को समर्पित हैं। भगवान शिव के सामने नंदी का, ब्रह्मा के सामने हंस तथा विष्णु के सामने गरुड़ का मंदिर स्थित है। इन तीनों मंदिरों का द्वार सूर्यास्त की दिशा में अर्थात पश्चिम दिशा में हैं।
दो अपित मंदिर
तीन वाहनों मंदिर व त्रिमूर्ति के बीच में उत्तर व दक्षिण दिशा की ओर मुख किये हुए दो और मंदिर है जिनमें अब मूर्तियां नहीं है। मान्यता हैं कि भगवान ब्रह्मा के पास स्थित मंदिर माता सरस्वती को व भगवान विष्णु के पास स्थित मंदिर माता लक्ष्मी को समर्पित था। मुख्य मंदिरों के बगल में स्थित होने के कारण इनका नाम अपितु मंदिर पड़ा। शिव मंदिर चौकोर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसकी ऊंचाई 47 मीटर व चौड़ाई 34 मीटर है। मंदिर धरातल पर ना होकर ऊंचाई पर स्थित हैं मंदिर का द्वार पूर्व दिशा की ओर हैं अर्थात इसमें पूर्वी दिशा से प्रवेश किया जाता है। मंदिर के बाहरी द्वार पर दोनों तरफ दो कक्ष है जिनमें महाकाल व नन्दीश्वर की मूर्तियां स्थापित हैं। सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर में प्रवेश करने पर वहां 5 कक्ष और मिलेंगे। इनमें से मुख्य कक्ष मंदिर के मध्य में स्थित है और मुख्य कक्ष के चारों और चारों दिशाओं में चार कक्ष हैं। मंदिर में प्रवेश करने पर हम पूर्वी कक्ष में प्रवेश करेंगे जो कि मुख्य कक्ष से जुड़ा हुआ है। मुख्य कक्ष में भगवान शिव को समर्पित 3 मीटर ऊँची मूर्ति हैं। यह मूर्ति कमल पर खड़ी है। भगवान शिव के मुकुट पर अर्द्ध चंद्रमा, मस्तिष्क के मध्य में तीसरी आँख भी बनी हुई हैं। मूर्ति के चार हाथ हैं जिससे उन्होंने त्रिशूल, डमरू व जप माला पकड़ी हुई हैं। मुख्य मंदिर के अन्य तीन दिशाओं के कक्ष किसी ना किसी को समर्पित हैं। इसमें उत्तर दिशा के कक्ष में माँ दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी मूर्ति, दक्षिण में महर्षि अगस्त्य की मूर्ति व पश्चिम में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित हैं। भगवान शिव के बाद दो और मुख्य मंदिर है जो भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा की हैं। दोनों मंदिरों की ऊंचाई 33 मीटर व चौड़ाई 20 मीटर हैं। इन दोनों मंदिरों में प्रवेश करने के लिए भी सीढ़ियाँ बानी हुई हैं। इस मंदिर एक ही मुख्य कक्ष हैं, जहाँ पर भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी को समर्पित मूर्तियाँ स्थापित हैं। शिव मंदिर की तरह इसमें कई कक्ष नहीं हैं।
भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के समय से जुड़ी विभिन्न कथाओं को मंदिर के दीवारों पर अंदर की ओर भित्तिचित्रों के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया हैं। इसमें रावण द्वारा माता सीता का अपहरण, हनुमान का वानर सेना के साथ श्रीराम की सहायता करना, श्रीराम का रावण पर आक्रमण व उसका वध के साथ भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की लीलाओं समेत कई अन्य कथाएं चित्रों के माध्यम से देख सकते हैं। इस चित्रों को भी मंदिर घूमने के अनुसार बनाया गया हैं। यह सारे चित्र शिव मंदिर में प्रवेश करने से लेकर मंदिर की प्रदक्षिणा करने के अनुसार चलते रहते हैं। शिव मंदिर में श्रीराम के जीवन से संबंधित चित्र बने हुए हैं जो ब्रह्मा मंदिर तक जाते हैं। विष्णुजी के मंदिर पर श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं।