पाकिस्तान में स्थित माँ हिंगलाज भवानी मंदिर की मान्यता और इतिहास

hinglaaj mata

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगलाज माता का एक मंदिर प्रसिद्ध मंदिर स्थित है माना जाता है कि माता सती के 51 शक्तिपीठों में से यह एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। बलूचिस्तान राज्य में हिंगोल नदी के पास हिंगलाज क्षेत्र में स्थित यह माता का मंदिर बहुत ही अद्भुत है. हिंगलाज माता मंदिर हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी और नानी मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है. इस मंदिर को लेकर लोगो की मान्यता है कि जो भी यहाँ माता के दर्शन करने आता है और सच्चे मन से माँ की उपासना करता है माँ उनकी सभी इच्छाएं पूरी करती है लेकिन, सवाल ये उठता है कि आखिर हिंगलाज माता का मंदिर क्यों इतना प्रचलित है. चलिए जानते हैं कि इसके पीछे की कथा ।

इस शक्तिपीठ को लेकर ऐसा माना जाता है कि इसकी यात्रा का पुण्य चारधाम की यात्रा के समान ही माना जाता है. जीवन में जिस प्रकार प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान, गंगासागर में स्नान और चारधाम की यात्रा को बहुत ही पावन माना गया है. ठीक उसी तरह हिंगलाज मंदिर के दर्शन भी धार्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है. इस मंदिर का जिक्र दुर्गा चालीसा में भी मिलता है.

हिंगलाज मंदिर की पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार, प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री सती के लिए एक योग्य वर की तलाश कर रहे थे. लेकिन, माता सती ने अपने पिता के खिलाफ जाकर शिव जी को अपना पति चुन लिया था. इस बात से दक्ष बहुत नाराज हो गए थे. फिर, कुछ समय बाद प्रजापति दक्ष ने एक बड़े यज्ञ आयोजन किया, लेकिन उसमें जानबूझकर भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया था. जब माता सती को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और गुस्सा भी आया. उन्होंने इस अपमान को सहन नहीं किया और यज्ञ की अग्नि में स्वंम को भस्म कर लिया माता सती की मृत्यु से भगवान शिव बहुत दुखी और क्रोधित हो गए थे. उन्होंने प्रजापति दक्ष को सजा दी, लेकिन बाद में शिव जी ने दक्ष को माफ कर दिया और जीवनदान भी दे दिया था. इसके बाद भी, शिव जी माता सती की याद में इतने दुखी होकर उनके शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहे थे. तब भगवान विष्णु ने स्थिति को संभालने के लिए माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 108 टुकड़ों में बांट दिया था. इनमें से 51 टुकड़े पृथ्वी पर गिरे और बाकी दूसरे लोकों में. जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां देवी माँ के मंदिर बने जिन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है. हर शक्ति पीठ देवी के एक अलग रूप को समर्पित है।