भारत भूमि, सदैव से ही महान संतों, ऋषियों और महापुरुषों की जन्मभूमि रही है। इन महापुरुषों ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान और साधना से ना केवल भारत, बल्कि पूरे दुनिया को आलोकित किया है। ऐसे ही महान आध्यात्मिक गुरुओं में से एक स्वामी रामकृष्ण परमहंस हैं, जिनका जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारहाटी गाँव में हुआ था। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जीवन, प्रेरणा और त्याग की अद्भुत कहानी है। बचपन से ही ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले रामकृष्ण, 16 वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बन गए। रामकृष्ण परमहंस ने तोतापुरी जी से आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान की थी , और शिक्षाओं का आधार वेदांत दर्शन, भक्ति मार्ग और तंत्र विद्या थी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की पत्नी शारदा देवी थीं।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस अक्सर प्रकृति में भगवान की उपस्थिति का अनुभव करते थे, और उनकी भक्ति में अपने आत्मा को मिलाने का उदाहारण प्रस्तुत किया। उनका भक्तिभाव उनकी शिक्षाओं में भी प्रकट होता है, जिनमें सभी धर्मों को एक में मिलाने की प्रेरणा व्यक्त होती है। मां काली के साकार और निराकार स्वरूप की पूजा से उन्होंने अनंत आनंद और साक्षात्कार प्राप्त किया। उनकी दृष्टि में, मां काली समस्त जगत की माता हैं रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों की एकता पर बल दिया। उनका मानना था कि सभी धर्म ईश्वर की ओर ले जाने वाले विभिन्न मार्ग हैं। उन्होंने प्रेम, भक्ति, और आत्म-साक्षात्कार की शिक्षा दी।
माँ काली के भक्त :
1855 में वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में कार्यरत हुए। यहाँ उन्होंने माँ काली की भक्ति में लीन होकर कठोर साधना की। विभिन्न धर्मों और दर्शनों का अध्ययन किया। रामकृष्ण परमहंस जी ने ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति पर बल दिया। उन्होंने सभी धर्मों को समान माना और सहिष्णुता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भक्ति, ज्ञान और कर्म योग से होकर गुजरता है। उन्होंने मानव सेवा को ईश्वर सेवा के समान माना। स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक महान आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाती हैं। 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया। आज भी वे भारत और दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं।