घर बनाते समय सीढ़ियों की दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वास्तु के अनुसार गलत दिशा में बनी सीढ़ियां घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और सुख-शांति को प्रभावित करती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, सीढ़ियां कभी भी ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में नहीं बनानी चाहिए, यह दिशा देव स्थान मानी जाती है। सीढ़ियों के लिए नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) सबसे शुभ मानी जाती है। सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए और वे सीधी होनी चाहिए, न कि गोल या घुमावदार। सीढ़ियों के नीचे शौचालय या किचन भी नहीं बनाना चाहिए। यदि भवन निर्माण में इन बातों का ध्यान न दिया जाए तो परिवार को मानसिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनाते समय सीढ़ियों की दिशा और बनावट पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि गलत दिशा में बनी सीढ़ियां जीवन में कष्ट, तनाव और अशांति ला सकती हैं।
- सीढ़ियां ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह दिशा हल्की और पवित्र मानी जाती है। इसके विपरीत, नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में सीढ़ियां बनाना शुभ होता है क्योंकि यह भाग भारी होना चाहिए। वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) भी दूसरा विकल्प हो सकता है, लेकिन सीढ़ियां पूर्वी या उत्तरी दीवार से न लगें।
- सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम में होनी चाहिए, जैसे कि 5, 7, 9, 11 आदि। सम संख्या में सीढ़ियां अशुभ मानी जाती हैं।
- सीढ़ियां चढ़ते समय व्यक्ति का मुख पश्चिम या दक्षिण की ओर और ऊपर जाते समय अंत में उत्तर या पूर्व की ओर होना शुभ होता है। उतरते समय भी अंतिम दिशा उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए।
- सीढ़ियों के सामने ईश्वर की फोटो या कोई शुभ यंत्र अवश्य लगाना चाहिए, ताकि निगाह उस पर पड़े। सीढ़ियों को यथासंभव पूर्वी और उत्तरी दीवार से न लगाएं।
- गोलाईदार या भवन को लपेटती हुई सीढ़ियां बनाना वास्तु दोष उत्पन्न करता है। सीढ़ियों के प्रारंभ और अंत में मजबूत दरवाजे होना चाहिए। नीचे का दरवाजा ऊपर वाले से बड़ा या बराबर हो।
- सीढ़ियां प्रवेश द्वार के सामने या घर के मध्य में न बनाएं। अगर ऐसा है तो दोनों ओर फूलदार गमले रखें।
- सीढ़ियों के नीचे शयनकक्ष, पूजा स्थान या शौचालय न बनाएं। यहां गोदाम बनाया जा सकता है।