वेदों में यदि सबसे ऊर्जावान और महान मंत्र किसी को माना गया है तो वह है गायत्री मंत्र। लेकिन क्या आपको पता है गायत्री मंत्र की उत्पत्ति रामायण से हुई है क्योंकि इसकी रचना महर्षि विश्वामित्र ने की थी, जो रामायण से प्रेरित थे। तो चलिए जानते हैं कैसे महर्षि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की …
गायत्री मंत्र ज्ञान और ऊर्जा का स्रोत है। मनुस्मृति, भगवद्गीता और योगशास्त्रों में गायत्री मंत्र को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसे सभी मंत्रों की जननी कहा जाता है और यह ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का रास्ता बताता है। गायत्री मंत्र केवल एक साधारण मंत्र नहीं है, बल्कि यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला शक्तिशाली वैदिक मंत्र है। इसे पढ़ने से मन और आत्मा दोनों को शांति मिलती है।
क्यों कहा जाता है गायत्री मंत्र को वेदों का हृदय
गायत्री मंत्र वेदों का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मंत्र है। इसे वेदों की जननी भी कहा जाता है। यह मंत्र ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में मिलता है। गायत्री मंत्र मन, प्राण और आत्मा को साफ करता है और ध्यान में मदद करता है। इस मंत्र में सविता यानी सूर्य देव की पूजा होती है, जो जीवन देने वाली ऊर्जा के रूप में माने जाते हैं। गायत्री मंत्र पढ़ने से शांति, शक्ति और ज्ञान प्राप्त होता है। यह मंत्र सभी के लिए बहुत खास और प्रभावशाली है।
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र का अर्थ है – हम उस परम तेजस्वी सूर्यदेव का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को अच्छे और सही कार्य करने के लिए प्रेरित करें। यह मंत्र तीनों वेदों का मूल उद्देश्य दर्शाता है। गायत्री मंत्र बुद्धि की शुद्धि और जागरूकता का आह्वान करता है, जिससे व्यक्ति विवेक और धर्म के अनुसार जीवन जी सके। अन्य वेद मंत्र बाहरी पूजा के लिए होते हैं, लेकिन गायत्री मंत्र मन और आत्मा की आंतरिक यात्रा का मार्ग दिखाता है। यह मंत्र ऋग्वेद में मूल रूप से है, यजुर्वेद में पूजा में उपयोग होता है, और सामवेद में इसे गीत के रूप में गाया जाता है। इसलिए इसे त्रिवेदीय मंत्र कहा जाता है, जो तीनों वेदों में समान रूप से पूजनीय है। गायत्री देवी को मंत्रों की माता माना जाता है।
गायत्री मंत्र और रामायण का संबंध
क्या आप जानते हैं कि गायत्री मंत्र की रचना रामायण से जुड़ी एक कथा से मानी जाती है यह दिव्य मंत्र महर्षि विश्वामित्र द्वारा रचा गया था, जो रामायण में भगवान राम और लक्ष्मण के गुरु थे। उन्होंने अपने आश्रम में राम और लक्ष्मण को शिक्षा दी और यज्ञ की रक्षा के लिए राक्षसों से युद्ध करना सिखाया। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर सूर्य देव की उपासना की, जिससे उन्हें यह महान मंत्र प्राप्त हुआ। कई शास्त्रों में बताया गया है कि इस मंत्र में “भर्गो देवस्य” का अर्थ है “राम रूपी देवता की शक्ति”, जो हमें सही सोच और सत्कर्म की प्रेरणा देती है। एक मान्यता के अनुसार, गायत्री मंत्र रामायण के 24,000 श्लोकों से बना है, जहां हर 1,000 श्लोक के बाद जो पहला अक्षर आता है, उनसे यह मंत्र बनता है। इसलिए यह मंत्र रामायण से गहरा संबंध रखता है।