इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा 27 जून को पुरी, ओडिशा में निकाली जाएगी। यह यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है और इसे देखने और रथ खींचने हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है। हर साल तीन नए रथ बनाए जाते हैं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए। रथ यात्रा के बाद इन रथों को विधिपूर्वक तोड़ दिया जाता है। उनके पहिए और लकड़ियां भक्तों को सीमित मात्रा में दान के रूप में दी जाती हैं, जिन्हें लोग घर ले जाकर पूजा या धार्मिक कार्यों में उपयोग करते हैं।
पुरी जगन्नाथ यात्रा में तीन भव्य रथों का निर्माण किया जाता है, जो भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और देवी सुभद्रा को समर्पित होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहा जाता है, बलराम जी के रथ को ‘तालध्वज’ और सुभद्रा जी के रथ को ‘दर्पदलन पद्म’ कहते हैं। इन रथों की ऊंचाई, रंग और पहियों की संख्या अलग-अलग होती है, जो उन्हें विशिष्ट पहचान देती है और हर रथ का अपना धार्मिक महत्व होता है।
पुरी की रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों में पहियों की संख्या अलग-अलग होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ ‘नंदीघोष’ में 16 पहिए होते हैं, बलभद्र के ‘तालध्वज’ रथ में 14 पहिए और सुभद्रा के ‘दर्पदलन पद्म’ रथ में 12 पहिए लगाए जाते हैं। इस प्रकार कुल 42 पहिए होते हैं, जिन्हें पारंपरिक कारीगरों द्वारा बेहद मजबूती और शुद्ध लकड़ी से तैयार किया जाता है।
जगन्नाथ पुरी यात्रा के बाद रथ के पहियों की होती है नीलामी
भगवान जगन्नाथ के रथ का एक पवित्र हिस्सा अब लोग भी अपने घर ला सकते हैं। रथ यात्रा के बाद भगवान के रथ के पहिए और कुछ हिस्सों की नीलामी की जाती है। यह नीलामी भगवान जगन्नाथ की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से होती है। रथ का पहिया सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और इसकी शुरुआती कीमत लगभग 50,000 रुपये होती है। भक्तों को इन हिस्सों को खरीदने के लिए पहले आवेदन करना पड़ता है। मंदिर समिति यह भी सुनिश्चित करती है कि इन पवित्र वस्तुओं का किसी भी प्रकार से गलत उपयोग न हो।
नीलामी के बाद बची हुई लकड़ियों का क्या होता है
पुरी रथ यात्रा समाप्त होने के बाद रथ के पहियों की नीलामी की जाती है। इसके बाद रथ की बची हुई लकड़ियों का उपयोग मंदिर परिसर में ही होता है। कुछ लकड़ियां विशेष भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाती हैं, जबकि शेष लकड़ियां श्रीमंदिर की रसोई में भेज दी जाती हैं। वहां इन लकड़ियों का उपयोग भगवान के लिए महाप्रसाद बनाने में किया जाता है। रथ की पवित्र लकड़ियों से बना यह भोग अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना जाता है।