उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां देवताओं के साथ-साथ कुछ राक्षसों की भी पूजा होती है। इसका एक अनोखा उदाहरण है पौड़ी जिले के थलीसैंण ब्लॉक में स्थित पैठाणी गांव का राहु मंदिर। यह देश का एकमात्र राहु मंदिर है, जहां राहु की पूजा भगवान शिव के साथ की जाती है। मान्यता है कि अगर किसी कारणवश यहां राहु पूजा में बाधा आती है, तो भगवान शिव नाराज हो जाते हैं।
यही पर गिरा था राहु का सिर
राहु की कहानी सागर मंथन से जुड़ी है। जब देवता और असुर अमृत के लिए मंथन कर रहे थे, तब स्वरभानु नाम का राक्षस भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की चाल को समझ गया। वह देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पी गया। लेकिन भगवान विष्णु ने उसे देख लिया और सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। चूंकि उसने अमृत पी लिया था, वह अमर हो गया। उसका सिर राहु और धड़ केतु कहलाए। माना जाता है कि सुदर्शन से कटने के बाद राहु का सिर जिस स्थान पर गिरा, वह यही मंदिर स्थल है।
इस मंदिर को शंकराचार्य ने बनवाया था
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पैठाणी गांव में राहु का देश का एकमात्र मंदिर स्थित है। यह मंदिर एक खास स्थान पर बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों का संगम होता है। इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि जब आदिशंकराचार्य यहां पहुंचे तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि इस स्थान पर राहु का प्रकोप है। इसके बाद उन्होंने यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
राहु शांति के लिए दूर-दूर से आते है श्रद्धालु
भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काटे जाने के बाद माना जाता है कि उसका सिर इसी स्थान पर गिरा था। तभी से यहां राहु के कटे हुए सिर की पूजा की जाती है। यह मंदिर राहु दशा की शांति के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यह देश का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां राहु दशा को शांत करने के लिए विशेष पूजा होती है। देशभर से श्रद्धालु यहां राहु दोष से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस मंदिर में सिर्फ दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।