हनुमान जी हिन्दुओं के आराध्य देवता हैं, अधिकतर स्थानों पर इन्हें भगवान शिव का अवतार बताया गया है । वे भगवान राम के परम भक्त और प्रिय सखा हैं। हनुमान को ‘चिरञ्जीवी’ माना जाता है।
हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर आठ चिरंजीवी हैं उनमें से सात को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं तथा एक को श्राप के कारण अमरत्व मिला। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं।
ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था जिसे पहले कपिस्थल कहा जाता था।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, बचपन में एक सुबह हनुमान भूखे थे और उन्होंने सूर्य को देखा। गलती से उसे पका फल समझकर उन्होंने उसे खाने के लिए छलांग लगा दी। राजा इंद्र ने हनुमान पर अपने वज्र से प्रहार किया और वे टूटे जबड़े के साथ पृथ्वी पर गिर पड़े। हनुमान के पिता वायु परेशान होकर पृथ्वी से सारी वायु वापस ले ली। वायु की कमी से सभी जीवित प्राणियों को कष्ट हुआ। इससे प्रेरित होकर शिव ने हनुमान को पुनर्जीवित किया, जिसके बदले में वायु ने प्राणियों को वायु लौटाने के लिए प्रेरित किया। चूंकि गलती भगवान इंद्र ने की थी , उन्होंने हनुमान को एक वरदान दिया कि उनका शरीर इंद्र के वज्र जितना मजबूत हो , और उनका वज्र भी उन्हें नुकसान न पहुंचा सके। भगवान वायु ने हनुमान को वरदान दिया कि वे हवा की तरह तेज़ होंगे और हवा उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाएगी। ब्रह्मा ने हनुमान को यह भी वरदान दिया कि वे किसी भी ऐसी जगह जा सकते हैं जहाँ उन्हें रोका न जा सके।
हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था। हनुमान जी बालपन मे बहुत नटखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को सता देते थे। उनके इस नटखट स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक लघु शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमान अपनी सब शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे और पुनः किसी अन्य के स्मरण कराने पर ही उन्हें अपनी असीमित शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसा माना जाता है कि अगर हनुमान शाप रहित होते तो रामायण में राम-रावण युद्ध का स्वरूप पृथक ही होता। कदाचित वो स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को समाप्त कर देते।
पराशर संहिता के अनुसार, हनुमान जी सूर्य देव के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए थे। सूर्य देव के पास 9 विद्याएं थी। पांच विद्याएं तो हनुमानजी सीख चुके थे। लेकिन बाकी की चार विद्याओं के लिए हनुमानजी का विवाहित होना जरूरी था।। तब सूर्य देव ने हनुमानजी को शादी करने का सुझाव दिया। पहले तो हनुमान जी राजी नहीं हुए। लेकिन बाद में उन्होंने हां कर दिया। सूर्य देव ने अपनी तपस्वी बेटी सुवर्चला से शादी करने का प्रस्ताव हनुमानजी के सामने रखा। उन्होंने कहा की सुवर्चला से शादी करने के बाद भी वह ब्रह्मचारी ही रहेंगे। क्योंकि, शादी के बाद वह फिर से तपस्या में लीन हो जाएंगी। इसके बाद हनुमान जी ने सुर्वचला के साथ शादी कर ली और अपनी पूर्ण शिक्षा हासिल की। इस तरह हनुमान जी शादीशुदा होने के बाद भी ब्रह्मचारी बने रहे। भारत में हनुमान जी की उनकी पत्नी के साथ मात्र एक मंदिर है जो कि तेलंगाना के खम्मम जिले में है। इस मंदिर में हनुमान जी और उनकी पत्नी सुर्वचला की पूजा की जाती है।