Sheetla Ashtami vart : कब है शीतला अष्टमी व्रत जानिए, पूजा मुहूर्त और महत्व

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हिन्दू धर्म में बसौड़ा एक महत्वपूर्ण त्योहार है. शीतला अष्टमी को ’बसौड़ा पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है. होली के बाद सातवें और आठवें दिन शीतला माता की पूजा करने की परंपरा है. इन्हें शीतला सप्तमी या शीतलाष्टमी केर नाम से जाना जाता है. शीतला माता का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है. पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक के साथ ही अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है.

चैत्र मास में शीतला सप्तमी व्रत 21 मार्च और अष्टमी 22 मार्च को है. इस व्रत में ठंडा खाना खाने की प्रथा है. जो भी लोग ये व्रत करते हैं, वे एक दिन पहले बनाया हुआ खाना ही खाते हैं. पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरुआत 21 मार्च को देर रात 02:45 पर शुरू होगी और 22 मार्च को सुबह 04:23 पर समाप्त होगी. शीतला सप्तमी पर पूजा के लिए शुभ समय 21 मार्च को सुबह 06:24 मिनट से लेकर शाम 06:33 मिनट तक है. इस दौरान साधक देवी मां शीतला की पूजा कर सकते हैं.

क्यों करते हैं ठंडा भोजन

कहीं पर सप्तमी के दिन और कहीं पर अष्टमी के दिन ठंडा भोजन किया जाता है दरअसल, ये समय शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है. इस दौरान मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने से हमें मौसमी बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है यह त्योहार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. बसौड़ा पूजा, शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है. आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद ही पड़ता है लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं.

बसौड़ा या शीतला अष्टमी का यह त्योहार उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक लोकप्रिय है. राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से उन्हें कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है.

बच्चों को बीमारियों से दूर रखने के लिए और उनकी खुशहाली के लिए इस त्योहार को मनाने की परंपरा कई बरसों से चली आ रही है. इस दिन माता शीतला की बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है और स्वयं भी प्रसाद के रूप में बासी भोजन ही करना होता है.

नाम के अनुसार ही शीतला माता को शीतल चीजें पसंद हैं. मां शीतला का उल्लेख सर्वप्रथम स्कन्दपुराण में मिलता है. शीतला माता का स्वरूप अत्यंत शीतल है और कष्ट-रोग हरने वाली हैं. गधा इनकी सवारी है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है.