Written by : Ekta Mishra
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकादंता संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश के ‘एकादंता’ रूप को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में आने वाली परेशानियां और विघ्न दूर होते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। महिलाएं यह व्रत अपनी संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं, जबकि कुछ लोग संतान प्राप्ति की कामना से भी यह व्रत रखते हैं।
एकादंता संकष्टी चतुर्थी 2025 तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि की शुरुआत 16 मई को सुबह 4 बजकर 2 मिनट पर होगी और इसका समापन 17 मई को सुबह 5 बजकर 13 मिनट पर होगा। चूंकि पूजा चंद्रमा के दर्शन के बाद की जाती है, इसलिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 मई, शुक्रवार को रखा जाएगा। इस दिन चंद्रोदय रात 10 बजकर 39 मिनट पर होगा, जो पूजा का सबसे शुभ समय माना जाता है।
व्रत और पूजन विधि
एकादंता संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान करके भगवान गणेश के सामने व्रत का संकल्प लें। पूजा की जगह को साफ करें और गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर रखें। उन्हें गंगाजल या साफ पानी से स्नान कराएं, फिर लाल या पीले वस्त्र पहनाएं। चंदन, हल्दी और कुमकुम से उनका श्रृंगार करें। गणेश जी को दूर्वा घास और लाल या पीले फूल अर्पित करें। अंत में दीपक और धूप जलाकर गणेश जी की आरती करें।
पूजा के समय “ॐ गं गणपतये नमः” या “ॐ वक्रतुण्डाय हुं” मंत्र का जप करें। इसके बाद श्रद्धा और भक्ति के साथ संकष्टी व्रत की कथा सुनें। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को जल अर्पित कर अर्घ्य दें और फिर व्रत का पारण करें। व्रत पूरा करने के बाद सात्विक भोजन करें। अंत में अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान करें। यह व्रत सुख, समृद्धि और विघ्नों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
एकादंता संकष्टी चतुर्थी का व्रत अगर श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए, तो यह जीवन की सभी परेशानियों और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
कैसे पड़ा गणेश जी का एकदन्त नाम
एक बार परशुराम जी, शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस समय गणेश जी द्वारपाल के रूप में खड़े थे और उन्होंने परशुराम जी को भीतर जाने से रोक दिया। इस पर परशुराम क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी पर वार कर दिया। यह फरसा स्वयं भगवान शिव का दिया हुआ था, इसलिए गणेश जी उसका अपमान नहीं कर सके और वार को झेल लिया। इससे उनका एक दांत टूट गया। तभी से उनका नाम “एकदन्त” पड़ा, जिसका अर्थ है – एक दांत वाला।