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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > Rangbahri Ekadashi 2025 : रंगभरी एकादशी के दिन खाटूश्याम मंदिर में होता है भव्य आयोजन
व्रत और त्योहार

Rangbahri Ekadashi 2025 : रंगभरी एकादशी के दिन खाटूश्याम मंदिर में होता है भव्य आयोजन

दिव्यसुधा
Last updated: March 9, 2025 6:12 am
दिव्यसुधा
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बसंत पंचमी से ही कान्हा की नगरी मथुरा में होली की शुरुआत हो जाती है. प्रतिदिन विभिन्न आयोजनों के साथ विभिन्न मंदिरों में भक्त अपने आराध्या के साथ होली खेलते हैं बांके बिहारी मंदिर में बसंत पंचमी के दिन से ही 40 दिवसीय होली का शुभारंभ हो जाता है. रंगभरी एकादशी पर होली का उल्लास अपने चरम पर दिखाई देता है. जहां एक ओर श्रद्धालुओं ने पंचकोसी परिक्रमा करके पुण्य अर्जित करते है तो वहीं देश विदेश से आए श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य भगवान के साथ होली खेलकर अपने आप को धन्य मानते है विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में सुबह से ही देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है. इस दौरान श्रद्धालु अपने आराध्य के साथ जमकर होली खेलते है. साथ ही अपने आराध्य की एक झलक पाने के लिए भक्त आतुर नजर आते है।

लेकिन, आज के दिन रंगभरनी एकादशी से बांके बिहारी पूर्णिमा तक होली खेलते हैं सुबह शाम. शाम के समय बिहारी जी फूलों की होली भी खेलते हैं, तो आज से ही ठाकुर जी की लड्डू होली, जलेबी होली, फूलों की होली, गुलाल के रंगों की होली, अबीर होली, टेसू के रंग की होली और केसर युक्त ठाकुर जी को जल चढ़ता है. आज से बिहारी जी की पोशाक का रंग भी सफेद हो जाता है. सर्वप्रथम पुजारी ठाकुर जी को केसर का रंग लगाते हैं. अबीर-गुलाल आदि ठाकुर जी को अर्पण होता है और भक्त उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं. और यह मान्यता है कि बेरंग जिंदगी में ठाकुर जी अपना रंग स्वयं भर देते हैं. खाटू श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो जीवन में हार गए होते हैं, उनकी मन्नतें बाबा पूरी करते हैं।

खाटू श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है। दरअसल बर्बरीक ही खाटू श्याम के नाम से जाने जाते हैं। बर्बरीक ही भीम के पौते और घटोत्कच के पुत्र थे। इन्होंने देवी की विशेष पूजा अर्चना की थी, जिससे खुश होकर बर्बरीक को यह वरदान मिला था कि उनके पास के बाण कभी खाली नहीं जाएंगे। उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकेगा। महाभारत के युद्ध में बर्बरीक युद्ध को खत्म करने जा रहे थे। भगवान कृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक पहुंच गए तो अपनी बाणों की शक्ति से पलभर में महाभारत का युद्ध खत्म कर देंगे। इस पर भगवान कृष्ण ने एक साधु का रुप धरकर बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया और बर्बरीक ने अपने प्राणों की आहूति देकर अपना शीश उन्हें दान में दे दिया, उनके इसी त्याग और बलिदान के कारण भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे, तभी से उनका नाम खाटू श्याम पड़ा।

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