Written By : Ekta Mishra
नरसिंह जयंती आज मनाई जा रही है। यह व्रत हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर खंभे से प्रकट होकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और असुर राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत और सच्ची भक्ति की शक्ति का प्रतीक है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन व्रत रखकर श्रद्धा से भगवान नरसिंह की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। साथ ही कुंडली में ग्रहों के दोष भी शांत हो जाते हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 10 मई, शनिवार को शाम 5 बजकर 30 मिनट से होगी और यह 11 मई, रविवार को रात 8 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। चूंकि भगवान नृसिंह का प्रकट होना शाम के समय हुआ था, इसलिए यह पर्व 11 मई, रविवार को मनाया जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 4:21 बजे से 7:03 बजे तक रहेगा। भक्तों को पूजा के लिए कुल 2 घंटे 42 मिनट का शुभ समय मिलेगा।
नरसिंह जयंती पूजा विधि
आज ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके शुद्ध होकर भगवान नरसिंह की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर गंगाजल छिड़कें। फिर भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। अब कुमकुम, अक्षत, फूल, फल, अबीर, गुलाल, रोली और नैवेद्य अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और भक्ति भाव से पूजा करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें –
“नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।”
मंत्र जप के बाद नरसिंह भगवान की कथा पढ़ें या सुनें। इस दिन दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। शाम के समय दीप जलाकर आरती करें और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें।
नरसिंह जयंती की कथा
“पौराणिक कथा के अनुसार, जब राक्षस हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने किया, तो उसका भाई हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ। बदला लेने के लिए उसने कठोर तप करके ब्रह्मा और शिवजी को प्रसन्न किया और एक वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न किसी मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न दिन में, न रात में, न अंदर, न बाहर, उसी समय हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया नाम रखा गया प्रह्लाद। राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त बने। वे धर्म की बातें करते और महल के बच्चों को भी भगवान की भक्ति सिखाते। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने की बहुत कोशिश की, यातनाएं दीं, पर प्रह्लाद टस से मस नहीं हुए। एक दिन हिरण्यकश्यप ने गुस्से में प्रह्लाद से पूछा — तेरा भगवान है कहाँ? क्या वह इस खंभे में भी है? प्रह्लाद ने शांत भाव से उत्तर दिया — हाँ, भगवान हर जगह हैं। हिरण्यकश्यप ने खंभे को जोर से मारा। तभी खंभा फटा और उसमें से प्रकट हुए भगवान नृसिंह — आधे मनुष्य और आधे सिंह के रूप में। यह रूप न मनुष्य था, न पशु। भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप को दरवाज़े की चौखट पर, संध्या समय, अपनी जांघों पर रखकर नाखूनों से वध कर दिया और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। ठीक उसी तरीके से, जिससे कोई वरदान टूटे बिना भी अन्याय का अंत हो जाए। इसलिए नृसिंह जयंती पर भक्त भगवान की पूजा करते हैं जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं विष्णु रूप बदलकर धरती पर अवतार लिया।