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दिव्य सुधा > अन्य > Narad Muni : जब नारद जी को घमंड हो गया
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Narad Muni : जब नारद जी को घमंड हो गया

दिव्यसुधा
Last updated: March 12, 2025 9:09 am
दिव्यसुधा
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Narad Muni
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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवर्षि नारद को इस बात का घमंड हो गया था कि कामदेव भी उनकी तपस्या व ब्रह्मचर्य भंग नहीं कर पाए। देवर्षि नारद ने यह बात जाकर भगवान शंकर को बताई। लेकिन महादेव ने कहा कि इस बात को भगवान विष्णु के सामने इतने अभिमान के साथ नहीं कहना। शिव के मना करने के बाद भी नारद मुनि ने यह बात भगवान विष्णु को बता दी। तब भगवान विष्णु समझ गए की नारद मुनि को अहंकार हो गया है। फिर भगवान विष्णु ने नारद मुनि के अहंकार को खत्म करने के लिए योजना बनाई। नारद मुनि भगवान विष्णु को प्रणाम कर आगे बढ़ गए। रास्ते में नारद मुनि को एक बहुत ही सुन्दर भवन दिखाई दिया। वहां की राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन हो रहा था। नारद उस जगह पर पहुंच गए और वहां की राजकुमारी विश्वमोहिनी को देखकर मोहित हो गए।

भगवान विष्णु की माया के कारण यह सब हो रहा था। राजकुमारी का सुंदर रूप नारद मुनि को मोहित कर चुका था। जिस कारण नारद मुनि ने इस स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बना लिया। राजकुमारी को पाने की इच्छा रखते हुए नारद मुनि अपने स्वामी भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और उनसे उनके समान सुंदर रूप पाने की इच्छा जाहिर की। भगवान विष्णु ने नारद की इच्छा अनुसार उन्हें रूप भी दे दिया। नारद नहीं जानते थे कि भगवान विष्णु का एक वानर रूप भी है। हरि रूप लेकर नारद उस स्वयंवर मे पहुंच गए। उन्हें अपने आप पर इतना अभिमान हो गया था कि उन्होंने एक बार भी अपना चेहरा नहीं देखा। नारद मुनि को इस बात का विश्वास हो गया था कि हरि रूप को देखकर राजकुमारी उन्हीं के गले में वरमाला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ राजकुमारी ने नारद मुनि को छोड़ भगवान विष्णु के गले में माला डाल दी।

नारद के रूप को देखकर जब उनकी हंसी उड़ाई गई तो उन्होंने सरोवर में जाकर अपना चेहरा देखा तो उन्हें भगवान विष्णु पर क्रोध आया। क्रोध के वश में आकर नारद जी ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया और कहा कि जैसे में स्त्री के लिए धरती पर व्याकुल था वैसे ही आप भी मनुष्य रूप में जन्म लेकर स्त्री के वियोग से व्याकुल होकर धरती पर भटकेंगे और उस समय आपकी वानर ही सहायता करेंगे। लेकिन जब भगवान की माया का प्रभाव हटा तब नारद जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान से तुरंत क्षमा मांगी। माना जाता है कि ब्रम्हर्षि नारद के दोनों ही श्राप फलीभूत हुए। भगवान विष्णु को राम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा और माता सीता का वियोग भी सहना पड़ा और वानरों की भी सहायता ली।

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