कलियुग में कहा जाता है कि केवल नाम जप ही मोक्ष का सरल मार्ग है, लेकिन यह तभी प्रभावी होता है जब मन, तन और चेतना शुद्ध हो। अक्सर लोग वर्षों तक नाम जप करते हैं, फिर भी उनका मन भटकता रहता है, अशांति बनी रहती है और वे बुरी आदतों से बाहर नहीं निकल पाते। इसका कारण यह है कि केवल जीभ से नाम जप करने से मन नहीं बदलता। जब तक नाम हृदय में नहीं उतरता, तब तक शांति नहीं मिलती।
जीभ से ही नहीं मन से करें जप
कहते है कि जैसे कोई बर्तन लंबे समय तक गंदा पानी लिए रहता है, तो वह एक बार धोने से साफ नहीं होता, वैसे ही मन में जन्मों की वासनाएं और पाप छिपे होते हैं, जो जल्दी नहीं मिटते। इसलिए नाम जप को निरंतर और धैर्यपूर्वक करना जरूरी है। साथ ही सत्संग, अच्छे विचार और सही जीवनशैली भी जरूरी हैं। केवल नाम जप करने से ही तुरंत फल नहीं मिलता अगर जीवन में बदलाव न लाया जाए। दुख और अशांति कई बार हमारे पिछले कर्मों का परिणाम होती है। नाम जप इन कर्मों को धीरे-धीरे खत्म करता है, लेकिन इसमें समय लगता है। मन बार-बार पाप की ओर इसलिए खिंचता है क्योंकि इंद्रियों की पुरानी आदतें, भोग की लत और गलत संगति बनी रहती है। जैसे गाय अपने बछड़े की ओर खिंचती है, वैसे ही मन बार-बार वासना की ओर भागता है।
जप करते समय आस्था का होना जरुरी
नाम जप करते समय उसमें आस्था और महत्व का ज्ञान होना जरूरी है, वरना महीनों तक नाम जप करने के बाद भी मन कुछ अनुभव नहीं करता। चाहे मन लगे या न लगे, नाम जप करते रहना चाहिए। एक दिन जरूर ऐसा आएगा जब मन उसमें डूबेगा और उसका फल मिलेगा।
नाम जप एक सरल लेकिन गहराई भरी साधना है। यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि आस्था, धैर्य, सही संगति और जीवनशैली का संयोजन है। जब सब मिलकर काम करेंगे, तभी मन की शुद्धि और सच्चा आनंद मिलेगा।