पुरी (ओडिशा) में स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल भारत के चार धामों में से एक है, बल्कि यह अनेक अद्भुत रहस्यों और मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। जहां एक ओर इस मंदिर के चमत्कार और परंपराएं भक्तों को मोहित करते हैं, वहीं एक विशेष बात हर किसी का ध्यान खींचती है मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर कभी पैर नहीं रखा जाता। आखिर ऐसा क्यों? चलिए जानते हैं इसके पीछे की धार्मिक कथा और रहस्य
तीसरी सीढ़ी का विशेष स्थान: यमराज से जुड़ी मान्यता
जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार पर चढ़ने के लिए कुल 22 सीढ़ियां हैं। इनमें से नीचे से गिनी जाए तो तीसरी सीढ़ी और ऊपर से देखी जाए तो 20वीं सीढ़ी, सबसे रहस्यमयी मानी जाती है।
पौराणिक कथा क्या कहती है?
एक समय की बात है, यमराज स्वयं भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने मंदिर पहुंचे। उन्होंने कहा “प्रभु! आपके दर्शन मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में कोई भी प्राणी यमलोक नहीं आना चाहता।” यह बात सुनकर भगवान जगन्नाथ मुस्कुराए और बोले “हे धर्मराज! मैं तुम्हारी बात को अनदेखा नहीं कर सकता। इसीलिए मैं तुम्हें अपने मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर स्थान प्रदान करता हूं। जो भी भक्त मेरे दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पांव रखेगा, उसके सारे पाप भले ही नष्ट हो जाएंगे, परंतु वह सीधे यमलोक जाएगा।” इस प्रकार, मंदिर की यह तीसरी सीढ़ी “यम शिला” कहलाने लगी — यानी वह स्थान जहां यमराज का वास माना गया।
इसलिए नहीं रखा जाता तीसरी सीढ़ी पर पैर
यह सीढ़ी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के बाद लौटते समय सामने आती है। ऐसा विश्वास है कि अगर कोई व्यक्ति दर्शन के पश्चात इस सीढ़ी पर पैर रखता है, तो उसे यमलोक की यात्रा करनी पड़ती है। अतः श्रद्धालु इस सीढ़ी को पार करने के लिए या तो कूदकर आगे बढ़ते हैं, या उस पर पैर नहीं रखते।
विशेष परंपरा:
जगन्नाथ मंदिर में आने वाले पुरोहित और सेवायत (सेवा करने वाले पुजारी) भी इस सीढ़ी को अत्यंत श्रद्धा और सावधानी से पार करते हैं।
धार्मिक और आध्यात्मिक संदेश
इस कथा का गहरा आध्यात्मिक भाव है। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के संतुलन को दर्शाने वाला गूढ़ संदेश है। भगवान के दर्शन से मुक्ति संभव है, लेकिन यदि अहंकार या अज्ञानता के कारण व्यक्ति यमराज की सीमारेखा (तीसरी सीढ़ी) लांघता है, तो उसे पुनः मृत्यु के चक्र में प्रवेश करना पड़ता है। यह परंपरा हमें धर्म, मर्यादा और सावधानी का पाठ सिखाती है।
- क्या करें मंदिर दर्शन के समय?
दर्शन करने के बाद मंदिर की सीढ़ियां उतरते समय, तीसरी सीढ़ी को गिनकर पहचानें और उस पर पैर न रखें। - इस सीढ़ी पर हाथ जोड़कर “ॐ यमाय नमः” मंत्र बोलना शुभ माना जाता है।
- कई भक्त इस सीढ़ी पर फूल या अक्षत (चावल) अर्पित करते हैं, जो सम्मान का प्रतीक होता है।
आस्था, चेतावनी और प्रतीक
जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी केवल पत्थर की बनी एक सीढ़ी नहीं है, बल्कि वह एक आस्था, चेतावनी और प्रतीक है। यह याद दिलाती है कि ईश्वर के चरणों में समर्पण के साथ-साथ धर्म के नियमों का पालन भी आवश्यक है। ईश्वर दर्शन से मिलती है मुक्ति, पर नियम पालन से मिलता है जीवन का सही अर्थ।
टिप: यदि आप कभी जगन्नाथ पुरी जाएं, तो वहां की 22 सीढ़ियों में से इस तीसरी सीढ़ी को जरूर पहचानें और उसकी आध्यात्मिक गरिमा का सम्मान करें।
नोट: यह लेख धर्मग्रंथों, लोकमान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य अंधविश्वास फैलाना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जानकारी साझा करना है। किसी भी धार्मिक विश्वास को अपनाने से पहले विवेक और श्रद्धा दोनों का सहारा लें।