हम जब भी किसी मंदिर में जाते हैं तो वहां से कुछ न कुछ प्रसाद लेकर जरूर आते हैं। कभी प्रसाद के रूप में चढ़ाया गया भोग तो कभी फूल या फिर माला। इस परंपरा के पीछे ये मान्यता है कि मंदिर से कभी भी खाली हाथ नहीं आते। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां का प्रसाद घर लेकर जाने की सख्त मनाही है। इस आर्टिकल में हम मंदिर की इस अनोखी परंपरा के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे…..
राजस्थान के दौसा में स्थित है यह अनोखा मंदिर
हम जिस मंदिर का जिक्र इस लेख में कर रहे हैं वह मंदिर राजस्थान के दौसा मेंहदीपुर क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है और यहां उनको बालाजी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर परिसर में तीन अलग-अलग भगवानों के साथ पवनपुत्र की पूजा की जाती है। इन तीनों देवताओं को अलग-अलग प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है। बालाजी को लड्डू चढ़ाए जाते हैं, प्रेतराज को चावल और भैरों बाबा को उड़द का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि यहां आने वाले प्रत्येक भक्त के मानसिक व शारीरिक सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी मनाही है कि यहां का प्रसाद न तो आप घर ले जा सकते हैं और न ही आप किसी को बांट सकते हैं।
रहस्यमयी है मंदिर के प्रसाद की अनोखी परंपरा
आमतौर पर लोगो का मानना है कि प्रसाद जितने लोगों को दिया जाए उतना ही शुभ होता है और इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। परन्तु मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में अलग तरह का नियम है यहां का प्रसाद खाना ही नहीं घर भी ले जाना मना है। मान्यता अनुसार, लोग इस मंदिर में नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, इसलिए यहां पर नकारात्मक ऊर्जाएं रहती हैं। यदि कोई व्यक्ति यहां का प्रसाद फेकने के बजाय घर ले जाता है तो वह नकारात्मक ऊर्जा भी अपने साथ ले जा सकता है, जिससे जीवन पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से यहां का प्रसाद मंदिर में ही छोड़ने की परंपरा है।
एक प्रचलित मान्यता अनुसार, मेहंदीपुर बालाजी मंदिर से प्रसाद के अलावा कोई भी चीज खरीदकर घर लाना भी उचित नहीं माना जाता। कुछ लोग वहां से झंडा, कड़ा, फूल या अन्य सामान लेकर आते हैं और घरों में लगाते हैं, लेकिन मान्यता है कि ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर सकती है। इसलिए यहां से कोई भी चीज घर लाने के बजाय मंदिर में ही सब कुछ छोड़ देना सही माना जाता है।