होली का त्यौहार पूरे देश में बहुत ही हर्षो उल्लास से मनाया जाता है. होली का नाम सुनते ही लोगों का मन ख़ुशी और रंगों से भर जाता है. इस रंगों के त्यौहार को मनाने से एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है. दरअसल होलिका दहन से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है जिसके अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भाई के साथ मिलकर प्रहलाद को मारने की कोशिश की थी लेकिन प्रहलाद के बदले होलिका ही आग में जलकर मर गई. होली का त्यौहार इसी पौराणिक कथा के आधार पर मनाया जाता है, लेकिन सवाल यह है कि पूरी दुनिया में होलिका को एक राक्षसी के रूप में माना जाता है तो आखिर दहन से पहले उसका पूजन क्यों किया जाता है.
लोगों के मन में एक सवाल रहता है कि जिस होलिका ने प्रहलाद जैसे प्रभु भक्त को जलाने का प्रयत्न किया, उसका हजारों वर्षों से हम पूजन किसलिए करते हैं? होलिका-पूजन के पीछे एक बात है। जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने वाली थी, यह समाचार जब नगर में पहुँचा तो सभी लोगों ने उस दिन अपने अपने घरों में अग्नि प्रज्वलित कर प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी। लोकहृदय को प्रहलाद ने कैसे जीत लिया था, यह बात इस घटना में प्रतिबिम्बित होती है।
अग्निदेव ने लोगों के अंतःकरण की प्रार्थना को स्वीकार किया और लोगों की इच्छा के अनुसार ही कार्य हुआ। होलिका अग्नि में जल कर नष्ट हो गई और अग्नि की कसौटी में से पार उतरा हुआ प्रहलाद श्रेष्ठ पुरुष बन गया। प्रहलाद को बचाने की प्रार्थना के रूप में प्रारंभ हुई घर-घर की अग्नि पूजा ने कालक्रमानुसार सामुदायिक पूजा का रूप लिया और उससे ही हर जगह होलिका की पूजा प्रारंभ हुई।
इस कारण की जाती है होलिका ली पूजा –
होलिका ने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करके अपने ही भतीजे को हानि पहुंचाने की कोशिश की थी. इस कथा को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है.लेकिन इसके अलावा एक और लौकिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार होलिका दहन से पहले उसकी पूजा की जाती है. माना जाता है कि होलिका असल में एक देवी थी जो ऋषि के द्वारा दिए गए श्राप के कारण राक्षसी बन गई थी.अपने भतीजे प्रहलाद के साथ आग में बैठने के बाद उसकी मृत्यु हो गई और आग में जलने के कारण वह शुद्ध भी हो गई.
यही कारण है कि होलिका को राक्षसी होने के बाद होलिका दहन के दिन एक देवी के रूप में पूजा जाता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि होलिका दहन वाले दिन आग में एक मुट्ठी चावल डालने से होलिका देवी की कृपा बनी रहती है और कोई भी आपको हानि नहीं पहुंच पाता पाता है. अग्नि के चक्कर लगाने से कष्ट मिट जाते हैं.
एक अन्य मान्यता :-
मान्यताओं के अनुसार होली का त्यौहार मनाने के एक दिन पहले अग्नि की पूजन का विशेष महत्व माना जाता है. माना जाता है कि अग्नि देव की पूजा करने से मिलने वाले आशीर्वाद से अच्छी सेहत और लंबी आयु का वरदान मिलता है. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के अन्य रूपों में से एक रूप अग्निदेव का है. होलिका दहन में जो भी सामग्री डाली जाती है वो अग्निदेव ही देवताओं को पहुंचाते हैं. इसका जिक्र प्राचीन वेद पुराणों में किया गया है. अग्नि की प्रार्थना, उपासना से साधक धन, धान्य, और समृद्धि प्राप्त करता है.
होलिका दहन की पूजा विधि :-
होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूजा करने वाले जातकों को होलिका के पास जाकर पूर्व दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। इसके बाद पूजन सामग्री जिसमें कि जल, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, गुड़, हल्दी साबुत, मूंग, गुलाल और बताशे साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की पकी बालियां ले लें। इसके बाद होलिका के पास ही गाय के गोबर से बनी ढाल रखे। साथ ही गुलाल में रंगी, मौली, ढाल और खिलौने से बनी चार अलग-अलग मालाएं रख लें। इसमें पहली माला पितरों के लिए, दूसरी पवन सुत हनुमान जी के लिए, तीसरी मां शीतला और चौथी माला परिवार के नाम से रखी जाती है। इसके बाद होलिका के की परिक्रमा करते हुए उसमें कच्चा सूत लपेट दें। कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। फिर लोटे का शुद्ध जल और पूजन की अन्य सभी वस्तुओं को प्रसन्नचित्त होकर एक-एक करके होलिका को समर्पित करें। रोली, अक्षत व फूल आदि को भी पूजन में लगातार प्रयोग करें फिर अन्य पूजन सामग्री चढ़ाकर होलिका में अनाज की बालियां डाल दें। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है।