बिरजा मंदिर की धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता बहुत बड़ी है। यह मंदिर अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प और भक्तिभाव के लिए प्रसिद्ध है। बिरजा मंदिर में भक्तजन श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। यहां का वातावरण शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक होता है, जो दर्शन के लिए आने वाले लोगों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। इस मंदिर का पिंडदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां मात्र दर्शन से ही सात पीढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्थान तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
कहां पर स्थित है यह मंदिर?
ओडिशा के जाजपुर में स्थित है बिरजा मंदिर यह मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए बहुत खास जगह है। यहां मां बिरजा की पूजा होती है। दूर-दूर से लोग मां बिरजा के दर्शन करने आते हैं। नवरात्रि में मां बिरजा का खास सजावट होती है। स्कंद पुराण में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
मंदिर की विशेषता क्या है
मान्यता के अनुसार, यहां पर माता सती की नाभि गिरी थी। उसी स्थान पर बिरजा मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां पर एक कुंआ भी है जिसे धरती की नाभि कहा जाता है। इस कुएं के पानी से लोग अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। यह एक खास शक्तिपीठ है जहां पितरों का पिंडदान किया जाता है। चैत्र नवरात्रि में यहां बहुत श्रद्धालु आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां पार्वती ने महादेव को पाने के लिए यहां कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से मंदिर में 800 साल पुरानी 108 शिवलिंग भी स्थापित हैं।
किसने बनवाया था मंदिर
बिरजा मंदिर का निर्माण गुप्त काल में हुआ था। साल 1568 में अफगानों के आक्रमण के दौरान यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में 19वीं सदी में सुदर्शन महापात्र ने इसका पुनर्निर्माण और मरम्मत कराई।
मां बिरजा का महत्व
मां बिरजा की मूर्ति के सिर पर महादेव, चंद्रमा, नागराज और भगवान गणेश की तस्वीरें बनी हैं। मां बिरजा को महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में मां बिरजा के दर्शन करने से सात पीढ़ियों के लोगों को मोक्ष मिलता है।
नवरात्रि में होता है विशेष श्रृंगार
चैत्र नवरात्रि में मां बिरजा का श्रृंगार 15 साड़ियों और सोने के आभूषणों से किया जाता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान रोज़ मां बिरजा को 30 साड़ियां पहनाई जाती हैं। दोपहर में मां बिरजा को साग की सब्जी और रबड़ी, जबकि रात में आलू का भरता और दूध का भोग लगाया जाता है।