उत्तराखंड की देवभूमि में एक ऐसा गांव है, जहां हनुमान जी की पूजा नहीं होती। यहां तक कि उनका नाम भी नहीं लिया जाता। यह गांव है द्रोणागिरी, जो चमोली जिले की नीति घाटी में स्थित है। यहां के लोग मानते हैं कि हनुमान जी ने उनके आराध्य देवता की साधना भंग की थी, जिससे वे नाराज हैं।
रामायण से जुड़ी मान्यता
रामायण के अनुसार, जब रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण जी को मूर्छित कर दिया था, तो हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे थे। लेकिन उन्हें संजीवनी बूटी की पहचान नहीं हो पाई, जिससे उन्होंने पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया और ले आए। स्थानीय मान्यता के अनुसार, हनुमान जी ने पर्वत देवता की साधना भंग की और उनकी दाईं भुजा भी उखाड़ दी। इस कारण से यहां के लोग हनुमान जी से नाराज हैं।
द्रोणागिरी पर्वत की पूजा
द्रोणागिरी गांव के लोग द्रोणागिरी पर्वत को देवता मानते हैं और हर साल जून माह में पर्वत की विशेष पूजा करते हैं। इस पूजा में गांव के लोग और दूर-दूर से आए श्रद्धालु शामिल होते हैं। लेकिन इस पूजा में महिलाएं भाग नहीं लेतीं, क्योंकि उन्हें माना जाता है कि हनुमान जी ने वृद्धा से मदद ली थी, जिससे उनका सामाजिक बहिष्कार हुआ था।
कैसे पहुंचे द्रोणागिरी
द्रोणागिरी गांव तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से जुम्मा गांव तक टैक्सी या जीप से जाएं। इसके बाद लगभग 8 किलोमीटर की ट्रैकिंग करके द्रोणागिरी गांव पहुंच सकते हैं। यह रास्ता संकरा और कठिन है, लेकिन प्राकृतिक सुंदरता के कारण ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
लोक परंपराओं का अद्भुत उदाहरण
द्रोणागिरी गांव की यह मान्यता धार्मिक विविधता और लोक परंपराओं का अद्भुत उदाहरण है। यहां के लोग अपने आराध्य देवता की पूजा करते हैं और हनुमान जी से नाराजगी के कारण उनकी पूजा नहीं करते। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि धार्मिक विश्वास और परंपराएं समाज के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।