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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > भगवान विष्णु के कच्छप अवतार का पावन पर्व, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व
व्रत और त्योहार

भगवान विष्णु के कच्छप अवतार का पावन पर्व, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व

दिव्यसुधा
Last updated: May 12, 2025 11:02 am
दिव्यसुधा
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कच्छप अवतार
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कूर्म जयंती सनातन धर्म का एक खास पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने द्वितीय अवतार, कूर्म (कच्छप) के रूप में अवतरण किया था। यह अवतार समुद्र मंथन के समय लिया गया था। कूर्म जयंती हर साल वैशाख पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन सुख, समृद्धि और लंबी उम्र का प्रतीक माना जाता है। भक्त इस दिन तीर्थ स्नान करते हैं, दान देते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साल 2025 में कूर्म जयंती 12 मई को मनाई जाएगी।

कूर्म जयंती तिथि और शुभ मुहूर्त

कूर्म जयंती का पर्व इस साल 12 मई 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 4:21 बजे से 7:03 बजे तक रहेगा। वैशाख पूर्णिमा तिथि 11 मई की रात 8:01 बजे शुरू होकर 12 मई की रात 10:25 बजे खत्म होगी। भक्त इस दिन भगवान कूर्म की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कूर्म जयंती की पूजा विधि

कूर्म जयंती के दिन भक्त भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की विशेष पूजा करते हैं। पूजा से पहले सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो नदी में स्नान करें या गंगाजल मिले पानी से घर में स्नान करें। पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल या गौमूत्र से शुद्ध करें। फिर लकड़ी के पटरे पर तांबे के कलश में जल, फूल, दूध, तिल, गुड़ और चावल डालकर रखें और भगवान कूर्म की मूर्ति स्थापित करें। भगवान को तिलक लगाएं, दीप जलाएं और फूल, चावल अर्पित करें। “ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:” मंत्र का जाप करें और आरती करके प्रसाद बांटें। कई भक्त उपवास रखते हैं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।

कूर्म जयंती का महत्व

सनातन धर्म में कूर्म जयंती को बहुत पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि भगवान कूर्म की पूजा करने से भक्तों को धन, अच्छा स्वास्थ्य और लंबी उम्र मिलती है। यह दिन जीवन में शांति और स्थिरता लाने वाला माना जाता है। इस दिन तीर्थ स्नान और दान करना बहुत शुभ होता है, जिससे पुण्य मिलता है। कूर्म अवतार भगवान विष्णु की शक्ति और दुनिया की रक्षा के संकल्प का प्रतीक है।

पौराणिक कथा

पद्मपुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब मंदराचल पर्वत को मंथन की छड़ी यानी मंथन दंड के रूप में प्रयोग किया गया। लेकिन समुद्र में कोई ठोस आधार न होने के कारण वह पर्वत डूबने लगा और मंथन कार्य रुक गया। तभी भगवान विष्णु ने कच्छप (कूर्म) अवतार लिया और विशाल कछुए का रूप धारण कर समुद्र की गहराई में जाकर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को स्थिर किया। उनकी इस सहायता से समुद्र मंथन संभव हो पाया और अमृत सहित 14 रत्नों की प्राप्ति हुई। जिस दिन भगवान विष्णु ने यह अवतार लिया, वह दिन कूर्म जयंती के रूप में हर साल मनाया जाता है।

TAGGED:humare bhgwankurma avtarvart tyoharvishnu jiसनातन धर्म
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