भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा के लिए पुरी में सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। आज भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ गुंडिचा मंदिर से वापस श्रीमंदिर लाया जाएगा। यह यात्रा रथों के माध्यम से होती है और लाखों श्रद्धालु इसका साक्षी बनने आते हैं। मान्यता है कि रथयात्रा के समय भगवान अपने जन्मस्थान जाकर बचपन की स्मृतियां ताजा करते हैं और मौसी के स्नेह का आनंद लेते हैं। इस सेवा में पंडा, महापंडा के साथ-साथ परंपरागत सेवक दैत्यपति भी विशेष भूमिका निभाते हैं, जो शुद्ध भाव से सेवा करते हैं।
कौन हैं दैत्यपति
भगवान जगन्नाथ की सेवा में दैत्यपतियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। ये सेवक रथयात्रा और मंदिर की सभी प्रमुख रस्मों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। रथयात्रा के दौरान वे भगवान की प्रतिमाओं को मंदिर से बाहर लाते हैं और रथ पर स्थापित करते हैं। ये प्रभु की सुरक्षा, साज-सज्जा और अन्य विशेष सेवाओं का दायित्व निभाते हैं। रथ खींचने से पहले कई पारंपरिक रस्में भी दैत्यपति ही निभाते हैं। इन्हें भगवान जगन्नाथ के अंगरक्षक या शाही सेवक कहा जाता है। यह सेवा पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा है और इन्हें इसके लिए मानधन भी दिया जाता है।
किस आयु में करते हैं सेवा?
श्रीमंदिर के प्रमुख दैत्यपति सेवादार जगन्नाथ स्वाइन महापात्रा बताते हैं कि दैत्यपतियों की सेवा परंपरा जन्म से ही शुरू हो जाती है। उनके अनुसार, जैसे ही परिवार में किसी पुरुष बच्चे का जन्म होता है और अगर उस समय रथयात्रा चल रही हो, तो उस शिशु को भी रथ पर ले जाकर भगवान की सेवा कराई जाती है। भले ही वह बच्चा सिर्फ एक महीने का ही क्यों न हो, उसकी छोटी सी सेवा भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इतना ही नहीं, उस नवजात को उसकी पहली सेवा के लिए दक्षिणा भी दी जाती है, जो परंपरा के अनुसार पचास रुपये होती है। जगन्नाथ स्वाइन महापात्रा बताते हैं कि उनके परिवार के सभी पुरुष सदस्य भगवान जगन्नाथ की सेवा में जीवनभर जुड़े रहते हैं। रथयात्रा के समय उनकी सेवाएं विशेष रूप से शुरू हो जाती हैं और वे भगवान की सुरक्षा, रस्में, और अन्य सेवाओं का पालन पूरी श्रद्धा से करते हैं।
दैत्यपतियों की अनोखी सेवा और बाहुड़ा रथयात्रा की खास परंपराएं
दैत्यपति भगवान जगन्नाथ की सेवा में हर छोटे-बड़े कार्य में शामिल रहते हैं। वे प्रभु की गुप्त सेवाओं से लेकर रथयात्रा की हर रस्म में भाग लेते हैं। जब भगवान बीमार होते हैं, तब उनकी देखभाल और चिकित्सा में भी दैत्यपति सेवा देते हैं। खासकर जब भगवान जगन्नाथ का नवकल वर्ष आता है, उस समय दैत्यपति पुराने विग्रहों के विसर्जन और नई मूर्तियों के निर्माण हेतु उपयुक्त ‘दर्शन दारु’ (विशेष लकड़ी) की खोज में निकलते हैं। यह सेवा परंपरा में अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है।
पोड़ा पीठा की मीठी परंपरा
बाहुड़ा रथयात्रा के दिन, जब भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) से वापस लौटते हैं, तो उनकी भूख का ध्यान रखते हुए मौसी बलभद्र को पोड़ा पीठा देती हैं। यह भगवान बलभद्र की प्रिय मिठाई है और इसे भोग लगाकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। पोड़ा पीठा ओडिशा का पारंपरिक और लोकप्रिय व्यंजन है।
बाहुड़ा रथयात्रा के बाद की प्रमुख रस्में
सुना बेश – 6 जुलाई 2025
अदार पना – 7 जुलाई 2025
निलाद्री बिजे – 8 जुलाई 2025