देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। इस दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह तक सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव संभालते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी की तिथि 5 जुलाई की शाम 6:58 बजे प्रारंभ होकर 6 जुलाई की रात 9:14 बजे तक रहेगी। उदया तिथि की मान्यता के अनुसार व्रत 6 जुलाई को रखा जाएगा।
इस दिन करें ये शुभ कार्य
व्रत और उपवास: भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस दिन व्रत करना अत्यंत शुभ माना गया है।
मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें। इससे मानसिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
दान पुण्य: पीली वस्तुएं, केले और अन्न का दान गरीबों व जरूरतमंदों में करें। इससे विष्णुजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
सात्विक आहार: व्रतधारी के परिजन भी सात्विक भोजन करें और संयमित जीवनशैली अपनाएं।
इन कार्यों से बचें, वरना हो सकती है अपवित्रता
किसी को अपशब्द न कहें: नकारात्मक विचारों और भाषा से दूर रहें, यह व्रत की ऊर्जा को प्रभावित कर सकता है।
वासना से जुड़े विचारों से बचें: शुद्ध और निर्मल मन से व्रत का पालन करें। ध्यान और धार्मिक पाठ में समय बिताएं।
मांस-मदिरा का सेवन न करें: यदि परिवार में कोई व्रत रख रहा है, तो सभी को संयम बरतना चाहिए।
दिन में न सोएं: व्रतधारी को दिन में नहीं सोना चाहिए, इससे व्रत का प्रभाव कम हो सकता है।
तुलसी पर जल न चढ़ाएं: मान्यता है कि तुलसी माता भी इस दिन व्रत रखती हैं, इसलिए उन्हें जल अर्पित करना वर्जित है।
किसी का अनादर न करें: बुजुर्गों, गुरुओं और जरूरतमंदों का अपमान भूलकर भी न करें।
अहंकार और दिखावे से बचें: व्रत के दिन विनम्रता और श्रद्धा सबसे बड़ी पूजा है।
क्यों है यह तिथि इतनी खास?
मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से न केवल मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। देवशयनी एकादशी से शुरू होने वाला चातुर्मास साधना, संयम और सेवा का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।