भारत एक ऐसी संस्कृति है जहां संस्कारों और भावनाओं को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और क्रिया में भी व्यक्त किया जाता है। इन्हीं क्रियाओं में से एक है – बड़ों के पैर छूना या चरण स्पर्श करना। यह केवल एक सामाजिक औपचारिकता नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का आदान-प्रदान है। यह परंपरा सम्मान, विनम्रता, और आत्मशुद्धि का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि लोग किसी के पैर क्यों छूते हैं? और जब कोई आपके चरण स्पर्श करता है, तो शास्त्रों के अनुसार आपको क्या करना चाहिए? इस लेख में हम चरण स्पर्श की परंपरा के गहरे सांस्कृतिक, शास्त्रीय और आध्यात्मिक अर्थ को समझेंगे।
क्यों छूते हैं हम किसी के पैर?
भारतीय समाज में जब कोई किसी बुजुर्ग, गुरु, माता-पिता या सम्माननीय व्यक्ति के पैर छूता है, तो उसके पीछे केवल एक आदत नहीं, बल्कि तीन प्रमुख उद्देश्यों की पूर्ति होती है:
अहंकार का त्याग और सम्मान का प्रदर्शन
पैर छूना एक विनम्र भाव है, जिससे हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सामने वाले व्यक्ति के अनुभव, ज्ञान या स्थिति के आगे सिर झुकाते हैं। यह हमारी अहंकार को तोड़ने वाली क्रिया है जहां “मैं” का विसर्जन होता है और “आप” का सम्मान उभरता है।
ऊर्जा का आदान-प्रदान
शास्त्रों के अनुसार, तप, ज्ञान और सेवा से युक्त व्यक्तियों के शरीर में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा होती है, विशेषकर उनके चरणों में। जब हम उनका चरण स्पर्श करते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे शरीर के माध्यम से मन, बुद्धि और चित्त में प्रवाहित होती है। यह आदान-प्रदान अदृश्य लेकिन अत्यंत प्रभावशाली होता है।
संस्कार और स्मृति
पैर छूना हमें संस्कारों की याद दिलाता है यह बताता है कि जीवन में विनम्रता, गुरुजनों का आदर और कृतज्ञता की भावना कितनी जरूरी है। यह एक स्मृति बिंदु की तरह है कि हमें कभी भी अपनी जड़ों और मार्गदर्शकों को नहीं भूलना चाहिए। शास्त्रों में चरण स्पर्श का महत्व
मनुस्मृति, जो हिन्दू धर्म का एक प्रमुख स्मृति ग्रंथ है, कहती है:
“गुरोः पत्नी ब्राह्मणः वृद्ध आचार्यः मातरः पितरौ च – एतेषां पादसंयोगात् पुण्यलाभो भवेत् ध्रुवम्।”
अर्थात् – गुरु-पत्नी, ब्राह्मण, वृद्ध, आचार्य, माता और पिता के चरण स्पर्श करने से निश्चित रूप से पुण्य की प्राप्ति होती है।
महाभारत में भी यह सिद्ध हुआ जब युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह के चरण छुए और उन्हें आदतन विजयी होने का आशीर्वाद मिला — एक ऐसा आशीर्वाद जो न बदला जा सकता था, न रद्द किया जा सकता था।
चरण स्पर्श का गूढ़ अर्थ: इंद्रिय संयम
‘इंद्रियों को वश में रखना’ – यह चरण स्पर्श की एक गहन व्याख्या है। जब हम झुकते हैं, तब हम सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मन, वाणी और चित्त से भी झुकते हैं। यह झुकाव विवेक और अनुशासन को जगाता है।
जब कोई आपके चरण छुए – आपको क्या करना चाहिए?
यह केवल चरण छूने वाले की जिम्मेदारी नहीं होती; चरण जिनके छुए जा रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया और भाव भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है।
- आशीर्वाद दें, लेकिन केवल औपचारिक नहीं
जब कोई आपके चरण छुए, तो केवल “जीते रहो” कह देने से काम नहीं चलता। यदि आप चाहें कि आपका आशीर्वाद वास्तव में फलदायक हो, तो उसमें सकारात्मक ऊर्जा भरें। अपनी चेतना को स्थिर और पवित्र रखें। - ईश्वर का नाम लेकर आशीर्वाद दें
जब आप आशीर्वाद के साथ किसी देवता या ईश्वर का नाम लेते हैं जैसे “भगवान तुम्हें सुख दें” या “शिवजी की कृपा बनी रहे” — तो वह आशीर्वाद केवल आपका नहीं रहता, बल्कि दैविक शक्ति का माध्यम बन जाता है। - विनम्र रहें, श्रेष्ठता का भाव न रखें
यह बहुत आवश्यक है कि जब कोई आपके चरण छुए, तो आप उसमें गर्व नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व महसूस करें। चरण स्पर्श आदर है, अहंकार की सीढ़ी नहीं।
सम्मान स्वीकार करें, लेकिन स्वयं को सदैव योग्य बनाए रखें। - यदि कोई समान उम्र या छोटे पद का नहीं है…
कभी-कभी कोई आपसे समान या ऊंचे स्तर का व्यक्ति आपके पैर छूता है तब आप उसे रोक सकते हैं, लेकिन यदि वो फिर भी करता है, तो विनम्रता से हाथ जोड़कर मुस्कराएं, क्योंकि यह क्रिया सम्मान की है, प्रतियोगिता की नहीं। - चरण स्पर्श- एक सांस्कृतिक शक्ति
भारत में चरण स्पर्श केवल परंपरा नहीं, यह संपूर्ण जीवन-दर्शन है। यह व्यक्ति को संस्कार, ऊर्जा, और आत्मविकास के मार्ग पर ले जाता है।
इसलिए जब अगली बार आप किसी के चरण छुएं या कोई आपके चरण छुए, तो उसे केवल सामाजिक व्यवहार न समझें उसमें छिपे आध्यात्मिक और भावनात्मक आयामों को महसूस करें।