महेश नवमी हिंदू धर्म का एक खास और पवित्र त्योहार है, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। यह पर्व खासतौर पर माहेश्वरी समाज द्वारा श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए यह दिन उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा जाती है। माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माहेश्वरी समाज के लोग इस दिन शोभायात्राएं निकालते हैं, धार्मिक कार्यक्रम करते हैं और समाज सेवा में भी भाग लेते हैं। इससे यह पर्व न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी बहुत खास बन जाता है।
महेश नवमी तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, महेश नवमी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 4 जून 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। नवमी तिथि की शुरुआत 3 जून को रात 9:56 बजे होगी और समाप्ति 4 जून को रात 11:54 बजे होगी। उदयातिथि के अनुसार पर्व 4 जून को ही मनाया जाएगा। इस दिन रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है, धार्मिक कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। महेश नवमी 2025 पर पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे शुभ समय माना जाता है। 4 जून 2025 को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:02 से 4:43 बजे तक रहेगा। इस समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
महेश नवमी पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर शिव जी, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा रखें।
- सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और फूल चढ़ाएं।
- माता पार्वती को सोलह श्रृंगार अर्पित करें।
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- महेश नवमी कथा सुनें और भगवान को खीर या फल का भोग लगाएं।
- रुद्राभिषेक करें और अंत में आरती व प्रसाद वितरण करें।
महेश नवमी का त्यौहार माहेश्वरी समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने उनके पूर्वजों को आशीर्वाद दिया था। यह पर्व सुख, समृद्धि, शांति और सफलता का प्रतीक है। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह दिन भक्ति, एकता और संस्कृति के संरक्षण का संदेश भी देता है।