देवी पार्वती को हर सुहागन स्त्री सौभाग्य, सुख और अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूजती है। मगर क्या आप जानते हैं कि देवी पार्वती का एक रूप ऐसा भी है, जिससे सुहागनें डरती हैं और उसकी पूजा नहीं करतीं? ये रूप है मां धूमावती का — एक ऐसा स्वरूप जो वैधव्य का प्रतीक माना जाता है। देवी के इस स्वरुप यानी की देवी धूमावती की जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. साल 2025 में यह तिथि 3 जून को पड़ रही है। आइए माँ के इस स्वरूप के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
क्यों डरती हैं सुहागनें धूमावती माता से?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां धूमावती का स्वरूप विधवा जैसा है। उनके वस्त्र श्वेत होते हैं, केश बिखरे होते हैं और श्रृंगार विहीन रहती हैं। वे एक सूप (चलनी) हाथ में लिए कौए पर सवार होती हैं। कौआ उनका वाहन है और उनके रथ के ध्वज पर भी कौए का चिन्ह होता है। ऐसी मान्यता है कि इस रूप में दर्शन करने से वैधव्य का प्रभाव पड़ सकता है, इसी कारण सुहागन स्त्रियां इनकी पूजा नहीं करतीं, केवल दूर से दर्शन करती हैं।
धूमावती जयंती कब मनाई जाती है?
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां धूमावती का प्राकट्य दिवस माना जाता है। इस वर्ष यह तिथि 03 जून 2025 को आ रही है।
देवी धूमावती की रहस्यमयी कथा: कैसे बना विधवा रूप?
एक बार देवी पार्वती को अत्यधिक भूख लगती है और वे भगवान शिव से भोजन मांगती हैं। महादेव उन्हें थोड़ी प्रतीक्षा करने को कहते हैं और भोजन की व्यवस्था हेतु निकल जाते हैं। इंतजार करते-करते पार्वती जी की भूख असहनीय हो जाती है और वे व्याकुल होकर स्वयं भगवान शिव को निगल जाती हैं। शिव के शरीर में मौजूद विष के कारण देवी पार्वती का शरीर धुएं जैसा हो जाता है और उनका स्वरूप भयानक एवं विकृत दिखने लगता है। इस रूप में वे विधवा प्रतीत होती हैं। तब भगवान शिव अपनी माया से प्रकट होकर कहते हैं “हे देवी! धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा नाम अब ‘धूमावती’ होगा। चूंकि तुमने मुझे निगल लिया, इसलिए अब तुम विधवा स्वरूप में पूजी जाओगी।”
शिव की लीला या पार्वती की जिज्ञासा?
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से जिज्ञासा जताई कि वे जानना चाहती हैं कि विधवा स्त्री कैसा अनुभव करती है। शिव जी ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए यह लीला रची, जिसमें देवी पार्वती ने शिव को निगल लिया और स्वयं ही वैधव्य का अनुभव किया। इस लीला का ही परिणाम है देवी का यह भयंकर और गूढ़ रूप – मां धूमावती।
शत्रु विनाश के लिए पूजनीय
मां धूमावती का यह स्वरूप शत्रुओं के संहार के लिए माना जाता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में नकारात्मकता, शत्रु बाधा या तांत्रिक प्रभावों से परेशान हैं, वे विशेष साधना के माध्यम से मां धूमावती की कृपा प्राप्त करते हैं। उनका यह रौद्र रूप, शक्ति का प्रतीक भी है।
गंभीर और गूढ़ स्वरूप
धूमावती माता, देवी पार्वती का एक रहस्यमयी, गंभीर और गूढ़ स्वरूप हैं। जहां एक ओर वे विधवा का प्रतीक मानी जाती हैं, वहीं दूसरी ओर वे शक्ति, तंत्र और संहार की देवी भी हैं। उनकी पूजा भले ही सुहागन स्त्रियां न करें, लेकिन उनका अस्तित्व, शक्ति और कथा हर किसी को चौंकाती है और सोचने पर मजबूर कर देती है — क्या यह लीला मात्र शिव की माया थी, या पार्वती की चेतना की गहराई?