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दिव्य सुधा > ग्रह-नक्षत्र > लाल किताब से जानिए, कुंडली में सूर्य के शुभ- अशुभ प्रभाव और उपाय
ग्रह-नक्षत्र

लाल किताब से जानिए, कुंडली में सूर्य के शुभ- अशुभ प्रभाव और उपाय

दिव्यसुधा
Last updated: May 28, 2025 1:57 pm
दिव्यसुधा
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लाल किताब को ज्योतिष की चमत्कारी पुस्तक कहा जाता है। इसका दूसरा अध्याय सूर्य ग्रह के विभिन्न भावों में स्थित होने पर उसके प्रभावों और विशेष उपायों की विस्तार से व्याख्या करता है। सूर्य को इस ग्रंथ में विष्णु यानी “प्रस्तुति के देवता” के रूप में दर्शाया गया है। वह सम्पूर्ण सौरमंडल का केंद्र है और प्रकाश, ताप, आत्मबल, प्रशासनिक योग्यता, प्रतिष्ठा व वित्त का प्रतीक है। सूर्य की उपस्थिति दिन का और उसकी अनुपस्थिति रात्रि का प्रतीक मानी जाती है। मनुष्य के शरीर में आत्मा और दूसरों की सेवा करने की क्षमता सूर्य के अधीन मानी जाती है।

सूर्य की स्थिति और फल
सूर्य यदि कुंडली के 1, 2, 3, 4, 5, 8, 9, 11, 12 भावों में स्थित हो, तो वह शुभ फल देता है। जबकि 6वें, 7वें और 10वें भाव में इसकी स्थिति हानिकारक मानी जाती है। सूर्य के मित्र ग्रह चंद्र, गुरु और मंगल हैं, जबकि शनि, शुक्र, राहु और केतु इसके शत्रु ग्रह माने गए हैं। पहला भाव सूर्य का पक्का घर और उच्च राशि का स्थान होता है, जबकि सातवां भाव उसका नीच स्थान माना जाता है।

यदि सूर्य उच्च स्थिति में हो या शुभ भावों में स्थित हो, तो व्यक्ति उन्नति करता है। इसके विपरीत, यदि सूर्य अशुभ हो, तो व्यक्ति को स्वास्थ्य, पारिवारिक, दांपत्य, आर्थिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

विभिन्न भावों में सूर्य के फल और उपाय

प्रथम भाव में सूर्य
शुभ फल: धार्मिक भवनों का निर्माण, सरकारी नौकरी, ईमानदारी से बढ़ती संपत्ति।
अशुभ फल: पिता की अकाल मृत्यु, दिन में सहवास करने से पत्नी रोगग्रस्त हो सकती है।
उपाय:

24वें वर्ष से पहले विवाह करें।

दिन में सहवास न करें।

घर के पूर्वी हिस्से में हैंडपंप लगवाएं।

गुड़ का त्याग करें।

द्वितीय भाव में सूर्य
शुभ फल: माता-पिता, बहन-बेटियों के लिए सहायक; कलात्मक योग।
अशुभ फल: संपत्ति विवाद, पत्नी से अनबन, आर्थिक नुकसान।
उपाय:

धार्मिक स्थलों पर नारियल, सरसों का तेल और बादाम दान करें।

चावल, दूध, चांदी का दान न लें।

तृतीय भाव में सूर्य
शुभ फल: छोटे भाई-बहनों से लाभ, ज्योतिष और गणित में रुचि।
अशुभ फल: चोरी, पारिवारिक अशांति।
उपाय:

माता को प्रसन्न रखें।

दूध व चावल का दान करें।

चतुर्थ भाव में सूर्य
शुभ फल: बुद्धिमान, कुशल प्रशासक, संतति को संपत्ति।
अशुभ फल: लालच, चोरी की प्रवृत्ति, नेत्र रोग।
उपाय:

अन्न और वस्त्रों का दान करें।

सोना-चांदी और वस्त्र का व्यापार करें, लोहा-लकड़ी का नहीं।

पंचम भाव में सूर्य
शुभ फल: संतान सुख, राजकीय सम्मान।
अशुभ फल: संतान मृत्यु, पत्नी की मृत्यु।
उपाय:

शीघ्र संतान सुख प्राप्त करें।

रसोई घर पूर्व दिशा में बनाएं।

43 दिन तक रोज थोड़ी मात्रा में सरसों का तेल ज़मीन पर गिराएं।

षष्ठ भाव में सूर्य
शुभ फल: क्रोधी, भाग्यशाली, सरकारी लाभ।
अशुभ फल: पुत्र हानि, उच्च रक्तचाप।
उपाय:

रात्रि को चूल्हा दूध से बुझाएं।

बंदरों को गुड़ और गेहूं खिलाएं।

सप्तम भाव में सूर्य
शुभ फल: मंत्री पद की प्राप्ति, असीम धन स्रोत।
अशुभ फल: परिवार में मृत्यु, आत्महत्या की प्रवृत्ति।
उपाय:

भोजन से पहले रोटी का टुकड़ा अग्नि को अर्पण करें।

काले रंग की गाय पालें (सफेद न हो)।

अष्टम भाव में सूर्य
शुभ फल: 22वें वर्ष से लाभ, सत्यवादी, राजसी जीवन।
अशुभ फल: गुस्सैल, स्वास्थ्य हानि।
उपाय:

दक्षिण दिशा में मुंह करके न रहें।

जलती चिता में तांबे के सिक्के डालें।

गुड़ बहते जल में प्रवाहित करें।

नवम भाव में सूर्य
शुभ फल: भाग्यशाली, मददगार, पारिवारिक सुख।
अशुभ फल: भाइयों से कलह, सरकार से नाराज़गी।
उपाय:

चांदी का दान करें, पर उपहार में न लें।

पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें।

दशम भाव में सूर्य
शुभ फल: सरकारी नौकरी, वाहन और सेवकों का सुख।
अशुभ फल: अल्पायु, सरकारी सुविधाओं से वंचित।
उपाय:

नीले और काले वस्त्रों से बचें।

43 वर्षों तक तांबे का सिक्का बहते जल में फेंकें।

एकादश भाव में सूर्य
शुभ फल: शाकाहारी होने पर पुत्र प्राप्ति और राज्य से लाभ।
अशुभ फल: अल्पायु।
उपाय:

मांस-मदिरा से दूर रहें।

सिरहाने बादाम या मूली रखकर अगले दिन मंदिर में दान करें।

द्वादश भाव में सूर्य
शुभ फल: 24वें वर्ष के बाद धन लाभ, स्थिर आय।
अशुभ फल: अनिद्रा, अवसाद, मशीनरी से हानि।
उपाय:

घर में आँगन रखें।

चक्की रखें।

शत्रुओं को क्षमा करें और धार्मिक बनें।

संकटों से मुक्ति

लाल किताब के अनुसार, सूर्य की स्थिति व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। भाव के अनुसार शुभ-अशुभ परिणाम और उनके समाधान निश्चित उपायों से सुधारे जा सकते हैं। ये उपाय अत्यंत सरल, परंतु गूढ़ फलदायी हैं। यदि इन्हें श्रद्धा और नियमितता से किया जाए, तो जीवन के अनेक संकटों से मुक्ति मिल सकती है।

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