Written By : Ekta Mishra
कल ज्येष्ठ मास का पहला बड़ा मंगल है। इस दिन को हनुमान जी की विशेष पूजा और सेवा का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन हनुमान जी की पहली बार प्रभु श्रीराम से भेंट हुई थी, इसलिए यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है। ज्येष्ठ माह के हर मंगलवार को “बड़ा मंगल” कहा जाता है और यह खासकर उत्तर भारत, विशेष रूप से लखनऊ में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर जगह-जगह भंडारों का आयोजन किया जाता है, जहाँ जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। लोग हनुमान मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं और आरती में भाग लेते हैं। लखनऊ में बड़े मंगल की परंपरा नवाबों के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि नवाब वाजिद अली शाह की रानी ने एक मनोकामना पूरी होने पर हनुमान मंदिर बनवाया था और तभी से यह परंपरा शुरू हुई, जो आज भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।
बड़े मंगल की तिथियां 2025 के
बड़ा मंगल सनातन धर्म का एक खास त्योहार है, जो ज्येष्ठ महीने के हर मंगलवार को मनाया जाता है। इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। उत्तर प्रदेश, खासकर लखनऊ में इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं, भंडारे लगाते हैं और गरीबों को भोजन कराते हैं। माना जाता है कि इस दिन हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी और भीम का घमंड तोड़ा था। इस दिन पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख-शांति मिलती है।
पहला बड़ा मंगल 13 मई
दूसरा बड़ा मंगल 20 मई
तीसरा बड़ा मंगल 27 मई
चौथा बड़ा मंगल 3 जून
पांचवां बड़ा मंगल 10 जून
बड़ा मंगल का महत्व
बड़ा मंगल को मनाने के पीछे कई पौराणिक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। एक कहानी महाभारत काल की है, जिसमें हनुमानजी ने भीम का घमंड तोड़ा था। भीम अपनी ताकत पर बहुत गर्व करता था, लेकिन जब उसने रास्ते में वृद्ध वानर रूपी हनुमानजी की पूंछ हटाने की कोशिश की और नहीं हटा पाया, तब उसे अपनी शक्ति का अहसास हुआ। दूसरी कहानी रामायण से जुड़ी है। जब हनुमानजी सीता माता की खोज में लंका पहुंचे, तो रावण ने उन्हें बंदी बना लिया। लेकिन हनुमानजी ने अपनी पूंछ में आग लगाकर पूरी लंका को जला दिया और रावण के घमंड को चूर कर दिया। इन दोनों घटनाओं में हनुमानजी ने बुराई और अहंकार पर विजय पाई। इन्हीं कारणों से बड़ा मंगल का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
बड़ा मंगल का इतिहास
लखनऊ शहर में बड़ा मंगल एक खास परंपरा बन चुका है, जिसका इतिहास नवाबी दौर से जुड़ा है। कहा जाता है कि अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हनुमानजी की भक्त थीं। एक बार उन्हें स्वप्न में हनुमानजी के दर्शन हुए। इसके बाद उन्होंने लखनऊ के अलीगंज इलाके में हनुमान जी का एक भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर निर्माण के बाद शहर में महामारी फैल गई। बेगम ने ज्येष्ठ मास के मंगलवार को मंदिर में विशेष पूजा करवाई। मान्यता है कि हनुमान जी की कृपा से महामारी समाप्त हो गई। उसी दिन से ज्येष्ठ महीने के हर मंगलवार को विशेष पूजा और भंडारे की परंपरा शुरू हुई। बेगम आलिया ने सबसे पहला भंडारा करवाया था। उसके बाद यह सिलसिला कभी नहीं रुका। आज भी लखनऊ में हर बड़े मंगल पर जगह-जगह भंडारे लगते हैं, लोग श्रद्धा से भोजन वितरित करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। समय के साथ यह परंपरा लखनऊ से निकलकर प्रयागराज, बनारस, गोंडा और रायबरेली जैसे शहरों में भी फैल गई है। अब यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सेवा भावना का भी उदाहरण बन चुका है।