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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > देव सूर्य मंदिर: सूर्य देव के तीन दिव्य रूपों की पौराणिक कथा
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देव सूर्य मंदिर: सूर्य देव के तीन दिव्य रूपों की पौराणिक कथा

दिव्यसुधा
Last updated: April 27, 2025 8:31 am
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हिंदू धर्म में सूर्य देव को पंचदेवों में एक महत्वपूर्ण देवता माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और यह मनुष्य के जीवन में मान-सम्मान, पिता-पुत्र के संबंध और सफलता का कारक है। सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं और एक वर्ष में बारह राशियों का चक्र पूरा करते हैं। सूर्य को आरोग्य का देवता भी माना जाता है, क्योंकि उनके प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है।

भारत में कई सूर्य मंदिर स्थित हैं, लेकिन औरंगाबाद जिले का देव सूर्य मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां कार्तिक और चैत छठ के दौरान लाखों श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं। हालांकि, कोरोना संक्रमण के कारण पिछले वर्ष से मेला आयोजन बंद कर दिया गया है और श्रद्धालुओं को मंदिर में दर्शन और सूर्यकुंड में स्नान व अर्घ्य देने पर भी रोक लगा दी गई है।

देव सूर्य मंदिर पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की शिल्पकला काले पत्थरों से बनाई गई है, जो देखने लायक है। मान्यता है कि देव सूर्य मंदिर में दर्शन करने से सूर्यदेव श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मंदिर की ऊचाई लगभग 100 फीट है। कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण किया था, और जो भक्त यहां सूर्य की आराधना करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। इस मंदिर में भगवान सूर्य तीन रूपों में विराजमान हैं। वे उषा काल में ब्रह्मा, मध्याह्न में विष्णु, और संध्या काल में महेश के रूप में दर्शन देते हैं।

मंदिर का निर्माण राजा एल ने करवाया था

देव सूर्य मंदिर के निर्माण का इतिहास शिलालेख से पता चलता है. शिलालेख के अनुसार, त्रेतायुग में राजा एल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित थे और एक दिन शिकार करते हुए देव पहुंचे. वहां के तालाब का पानी पीने से उनके शरीर के कुष्ठ रोग ठीक हो गए. राजा ने रात में सपना देखा कि तालाब में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएं दबी हुई हैं. उन्होंने तालाब को खुदवाकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमाएं प्राप्त कीं. इन प्रतिमाओं के लिए मंदिर बनवाकर उन्हें वहां स्थापित किया गया, जो अब देव सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

पश्चिमाभिमुख है सूर्य देव मंदिर

देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है. कहा जाता है कि औरंगजेब अपने शासनकाल में मंदिरों को तोड़ने आया था और जब उसने देव सूर्य मंदिर को तोड़ने की कोशिश की, तो पुजारियों ने इसका विरोध किया. औरंगजेब ने चुनौती दी कि अगर मंदिर में कुछ सत्य है, तो रातभर में मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा में बदल जाए, तो वह मंदिर को छोड़ देगा. रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर मुड़ गया, और औरंगजेब मंदिर को नहीं तोड़ सका.

माता अदिति ने की थी सूर्य पूजा

कहा जाता है कि जब देवता असुरों के हाथों हार गए थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र पाने के लिए देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की पूजा की थी. छठी मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें तेजस्वी और सर्वगुण संपन्न पुत्र का वरदान दिया. इसके बाद अदिति के पुत्र आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई.

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