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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > जागृत महादेव: क्यों कहलाते हैं बाबा केदारनाथ
मंदिर

जागृत महादेव: क्यों कहलाते हैं बाबा केदारनाथ

दिव्यसुधा
Last updated: April 28, 2025 2:46 pm
दिव्यसुधा
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जागृत महादेव
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एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। उस समय यातायात की सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता, उससे केदारनाथ का मार्ग पूछता और भगवान शिव का ध्यान करते हुए चलता रहा। उसे इस कठिन यात्रा में महीनों लग गए।

आखिरकार एक दिन वह थका-हारा केदारनाथ धाम पहुंचा, लेकिन यह देखकर उसका मन टूट गया कि मंदिर के द्वार बंद होने वाले थे। केदारनाथ मंदिर के द्वार हर साल केवल 6 महीने ही खुले रहते हैं, और बाकी 6 महीने बर्फबारी के कारण बंद रहते हैं। भक्त ने मंदिर के पुजारी से विनती की, मैं बहुत दूर से महीनों की यात्रा करके आया हूं। कृपा करके एक बार प्रभु के दर्शन करवा दीजिए। परंतु पुजारी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, यहाँ का नियम है – एक बार द्वार बंद हो गए तो फिर 6 महीने तक नहीं खुलते। भक्त बहुत रोया। वह बार-बार भगवान शिव को पुकारता रहा, प्रभु, बस एक बार दर्शन करा दो। उसने सभी से प्रार्थना की, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। मंदिर बंद हो गया और सभी लोग अपने-अपने रास्ते चले गए। उस भक्त का मन टूट चुका था, लेकिन उसकी श्रद्धा अटूट थी। उसे भरोसा था कि भगवान शिव उसकी पुकार ज़रूर सुनेंगे.

पंडित जी ने भक्त से कहा, अब यहाँ 6 महीने बाद आना। 6 महीने तक मंदिर के द्वार बंद रहेंगे। यहाँ भीषण ठंड और बर्फ पड़ती है। यह कहकर वे अन्य लोगों के साथ चले गए। लेकिन वह भक्त वहीं बैठा रह गया रोता रहा। उसकी आँखों से बहते आँसू उसके टूटे हुए मन की गवाही दे रहे थे। परंतु उसके भीतर एक अडिग विश्वास था मेरा शिव मुझे यूँ निराश नहीं करेंगे। धीरे-धीरे रात हो गई। चारों ओर अंधेरा छा गया। पहाड़ों की ठंडी हवाएँ और अकेलापन… पर फिर भी वह डटा रहा। तभी उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी। एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहे थे। लम्बा कद, जटाएं, एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में डमरू, गले में रुद्राक्ष की माला, और तन पर मृगचर्म। बाबा उसके पास आकर बैठ गए।स्नेह से पूछा, बेटा, कहाँ से आए हो? भक्त ने सारी व्यथा कह सुनाई। अंत में टूटे स्वर में बोला, बाबा जी, लगता है मेरा आना व्यर्थ हो गया। बाबा ने मुस्कराते हुए उसका कंधा थपथपाया, उसे ढांढस बंधाया और अपने झोले से खाना निकालकर उसे दिया। भक्त ने धन्यवाद कहते हुए वह प्रसाद ग्रहण किया। फिर बाबा ने कहा, बेटा, चिंता मत कर। मुझे लगता है, सुबह मंदिर के द्वार ज़रूर खुलेंगे और तुम प्रभु के दर्शन ज़रूर करोगे। बातों-बातों में वह भक्त बाबा की गोद में सिर रखकर कब सो गया, उसे खुद भी पता न चला। यह सब बस एक शुरुआत थी क्योंकि अगली सुबह उसके विश्वास का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलने वाला था।

बातों-बातों में वह भक्त कब बाबा की गोद में सो गया, उसे पता ही नहीं चला। जैसे ही सुबह की मद्धिम किरणें पर्वतों से उतर कर मंदिर परिसर में फैलीं, उसकी आंख खुली। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन बाबा कहीं नहीं थे। कुछ ही देर बाद उसने देखा कि पंडित जी अपनी मंडली के साथ मंदिर की ओर आ रहे हैं। वह दौड़कर उनके पास गया और श्रद्धा से प्रणाम करते हुए बोला “पंडित जी, कल आपने तो कहा था कि मंदिर 6 महीने के लिए बंद हो गया है, और अब कोई नहीं आएगा… लेकिन आप तो सुबह ही आ गए! पंडित जी ने ध्यान से उसकी ओर देखा, और आश्चर्य से पूछा, तुम वही हो ना जो मंदिर बंद होते समय आया था? जो मुझसे मिला था? लेकिन फिर तुम तो 6 महीने पहले यहां थे! आज जब द्वार खुलने का दिन है, तुम फिर कैसे यहीं हो? भक्त हैरान रह गया। बोला, नहीं पंडित जी, मैं तो यहीं था… मैं कहीं नहीं गया। कल रात मैं यहीं सो गया था। बाबा आए थे, उन्होंने मुझसे बातें कीं, मुझे खाना दिया… और सुबह हो गई। पंडित जी और पूरी मंडली यह सुनकर स्तब्ध रह गए। उन्होंने कहा बेटा, हम तो 6 महीने पहले मंदिर बंद करके गए थे और आज ही खुले हैं। तुम यहां इतनी ठंड और बर्फ में जीवित कैसे रह सकते हो? यह असंभव है भक्त ने जब उस बाबा का वर्णन किया—लंबे जटाधारी, त्रिशूल, डमरू, मृगचर्म धारी तो सब लोग नतमस्तक हो गए।

पंडित जी की बात सुनकर वह भक्त चकित रह गया। बोले, क्या! 6 महीने बीत गए? मुझे तो लगा कि बस एक रात ही बीती है! पंडित जी और उनकी मंडली विस्मय से भर उठे। बोले, बेटा, यह चमत्कार है! इतनी भीषण सर्दी, बर्फ और एकाकीपन में कोई भी इंसान 6 महीने तक जीवित नहीं रह सकता। ये किसी सामान्य बात का परिणाम नहीं हो सकता। तभी उस भक्त ने उन्हें पूरी घटना सुनाई कैसे एक सन्यासी बाबा आए, जिन्होंने उसे भोजन दिया, ढाढ़स बंधाया, और भरोसा दिलाया कि सुबह मंदिर खुलेगा। उसने बताया, बाबा लम्बे थे, जटाएं फैली हुई थीं। उनके हाथ में त्रिशूल था, दूसरे हाथ में डमरू। उन्होंने मृगचर्म धारण किया था। उनकी आँखों में असीम शांति और तेज था।

पंडित जी और मंडली सुनते ही नतमस्तक हो गए। उनकी आँखों में आंसू आ गए। सभी एक स्वर में बोले तुम्हें साक्षात भगवान शिव के दर्शन हुए हैं। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे लिए समय को रोक दिया। तुम्हारी निष्ठा, विश्वास और भक्ति ने शिव को प्रसन्न कर दिया। छह महीने तुम्हारे लिए एक रात बन गए। यह सिर्फ तुम्हारे पवित्र मन और अडिग श्रद्धा का फल है।

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