वाराणसी जिला चंदौली में स्थित महाकाली मंदिर में रोज सैंकडों लोग महाआरती में हिस्सा लेते हैं। इस महाआरती में आसपास ही नहीं, बल्कि दूर-दराज से लोग आते हैं। आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बाते बताएंगे,
दरअसल, कहानी लगभग पांच सौ पहले साल पहले की है। यहां काशी के राजा उदित नारायण सिंह ने प्रभु इच्छा से एक काली मंदिर बनवाया। इसके बाद से यहां रोज शाम को होने वाली आरती का विशेष महत्व माना जाता है। इसके चलते आरती के समय इस मंदिर के चार सौ मीटर की परिधि में रहने वाला हर शख्स मंदिर में पहुंच जाता है। क्षेत्रीय लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनके परिवार पर मां काली की विशेष कृपा रहती है। मां काली के मंदिर पर शाम छह बजते-बजते हरे रामा-हरे कृष्णा की जादुई धुन बजने लगती है। यह नजारा देखकर एक बार आपको लगेगा कि यहां कोई बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है, लेकिन यह सत्य नहीं है। यहां लोग पूरी श्रद्घा और भक्तिभाव से मां काली का गुणगान करते हैं और उनसे अपने अभीष्ट या मनोवांछित फल की कामना करते हैं।
शाम 5 बजे ही शुरू होनें लगती है तैयारी
शाम पांच बजे से ही मंदिर में होने वाली भव्य आरती की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोगों के हाथ में विभिन्न वाद्य यंत्र होते हैं। पूजा और आरती के लिए थाली मंदिर के पुजारी खुद तैयार करते हैं। इसके बाद शाम छह बजे से यहां महाआरती शुरू होती है। अब हम आपको ये बताएंगे कि ये महाआरती शुरू करने के पीछे का कारण क्या है, इसकी परंपरा कबसे चल रही है और इसकी मान्यता क्या है।
इस मंदिर के मान्यताओ की बात करें तो यहां कभी किसी जमाने में मां महाकाली को खुश करने के लिए बकरे की बलि दी जाती थी। हालांकि आज इस मान्यता और परंपरा पर प्रशासन ने रोक लगा दी है। मां काली आदिशक्ति हैं। गर्भगृह में जो महादेव बने विराजमान हैं, उनका नाम महाराजाधिराज के नाम से रखा गया है जों उदितेस्वर महादेव, प्रसिद्धेश्वर महादेव, दीपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पांचों देवता हैं, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती और गणेश।
नवरात्रि में लगती है भक्तों की भीड़
यहां पर नवरात्रि के दिनों में सुबह से शाम तक भक्तों का आवागमन लगा रहता हैं। चकिया और आस-पास जिलों के भक्त दर्शन के लिए यहां आते हैं। श्रद्घालुओं की ऐसा मानना है कि मां काली भक्तो के सभी मनोकामना को पूरा करती हैं। यहां मां के प्रसाद में नारियल और लाचीदाना को मुख्य रूप से पसंद किया जाता हैं।
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