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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > एक ऐसा मंदिर जहां साल में एक बार खुलता हैं कपाट
मंदिर

एक ऐसा मंदिर जहां साल में एक बार खुलता हैं कपाट

दिव्यसुधा
Last updated: April 4, 2025 7:52 am
दिव्यसुधा
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धर्मनगरी काशी में स्थित रामनगर के किले में स्थापित काले हनुमान जी मंदिर। साल में एक बार खुलने वाले इस मंदिर में दर्शन पूजन के लिए पूरे देश से श्रद्धालुओं का भीड़ उमड़ता है। राज परिवार के अनुसार, यह प्रतिमा किले में कहां से आई किसी को नहीं पता हां रामभक्त हनुमान ने महाराजा बनारस को स्वप्न में आकर इसकी जगह बताई थी और उसी स्थान पर उनकी स्थापना की गई है। रामनगर की रामलीला के अंतिम दिन जिस दिन राजगद्दी का मंचन भोर में महताबी की रौशनी में होता है उसी दिन इस मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं।

काशी के रामनगर किले में स्थित यह प्रतिमा काले पत्थर की और हनुमान जी के प्रतिरूप माने जाने वाले वानर रुप में हैं। इस प्रतिमा की खास बात यह है कि हनुमान के प्रतिमा पर वानर शरीर पर पाए जाने वाले रोएं की तरह रोएं भी हैं जिन्हे साक्षात देखा जा सकता है। यह मूर्ती इस किले में कहां से आई और कैसे स्थापित हुई किसी को नहीं पता ? इसके पीछे मान्यता है कि कई सदियों पहले महराज बनारस को एक स्वप्न में किले के पिछली तरफ जिधर गंगाजी का प्रवाह है वहां एक वानर रुपी हनुमान जी की प्रतिमा है और जिसने उन्हें यह स्वप्न में आकर बताया उसने ही इसे किले में स्थापित करने को कहा। इसपर काशी नरेश ने विश्वास कर खुदाई कराया तो काले हनुमान जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा मिली और उसकी स्थापना की गई।

त्रेता युग से बताया जाता है संबंध –
कहा जाता है कि काले हनुमान जी का संबंध त्रेता युग से है। यह उस समय की बात है जब भगवान राम , माता सीता को ढूंढने के लिए रामेश्वरम से लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता मांग रहे थे। समुद्र ने उन्हें वनवासी समझ कर अहंकार में रास्ता देने से मना कर दिया। इसपर उन्होंने अपनी प्रत्यंचा पर समुद्र को सुखाने का तीर चढ़ा लिया तो समुद्र ने प्रकट होकर उनसे क्षमा याचना की और रास्ता देने को कहा पर धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ा बाण वापस नहीं लिया जा सकता था। श्रीराम ने प्रत्यंचा पर चढ़ चुके उस बाण को पश्चिम दिशा की ओर छोड़ दिया। इसी समय बाण के तेज से धरती वासियों पर कोई आफत ना आए इसके लिये हनुमान जी घुटने के बल बैठ गये। ताकि धरती को डोलने से रोका जा सके। वहीं, श्रीराम के बाण के तेज के कारण हनुमानजी का पूरा देह झुलस गया। इस कारण उनका रंग काला पड़ गया।

राजगद्दी के दिन होता है दर्शन –
भगवान हनुमान की यह प्रतिमा यहां कैसे आई यह किसी को नहीं पता। बाद में जब यहां रामलीला शुरू हुई तो अंतिम दिन राजगद्दी के मंचन के बाद भगवान श्रीराम के अन्यन भक्त हनुमान जी के दर्शन कराए जाते हैं। वाराणसी ही नहीं पूरे देश से लोग काले हनुमान जी की इस नायाब प्रतिमा का दर्शन करने आते हैं जिसके रोए हैं।

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