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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > नवरात्रि विशेष…मां कुष्‍मांडा की व्रत कथा
व्रत और त्योहार

नवरात्रि विशेष…मां कुष्‍मांडा की व्रत कथा

दिव्यसुधा
Last updated: April 3, 2025 11:25 am
दिव्यसुधा
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Maa kushmanda
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इस बार चैत्र नवरात्रि 9 दिनों के बजाय 8 दिनों की है। नवरात्रि के नौ देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा-उपासना करने का विधान होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा और उपासना करने से भक्तों की सभी तरह के रोग, कष्ट और शोक समाप्त हो जाते हैं। भगवती पुराण में देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा से युक्त बताया है। जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला धारण किए हुए हैं। मां सिंह की सवारी करती हैं। उनका यह स्वरूप शक्ति, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है।

सनातन धर्म में वर्णित है कि प्राचीन काल में त्रिदेव ने सृष्टि की रचना का संकल्प लिया. उस समय पुरे ब्रह्मांड में चारो ओर अँधेरा फैला हुआ था. समस्त सृष्टि एकदम शांत थी, न कोई ध्वनि, न कोई संगीत, केवल एक गहरा सन्नाटा था. इस स्थिति में त्रिदेव ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता की प्राथना की. जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे रूप मां कुष्मांडा ने तुरंत ही ब्रह्मांड की रचना की. कहते है कि मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से सृष्टि का निर्माण किया. मां के चेहरे पर फैली मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रकाशमय हो गया. इस प्रकार अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करने के कारण जगत जननी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है. मां की महिमा अद्वितीय है.. शास्त्रों के अनुसार, मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं. ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर जो तेज है, वही सूर्य को प्रकाशवान बनाता है. मां सूर्य लोक के भीतर और बाहर हर स्थान पर निवास करने की क्षमता रखती हैं. उन्होंने सूर्य के समान कांतिमय तेज का आवरण धारण किया हुआ है. यह तेज केवल जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा द्वारा ही संभव है. मां के मुख पर एक तेजोमय आभा प्रकट होती है, जिससे समस्त जगत का कल्याण होता है.

मां कुष्मांडा की पूजा विधि
स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने पूजन स्थल को साफ करें। मां कुष्मांडा की प्रतिमा को पूजा स्थल पर स्थापित करें। मां का ध्यान कर, आमंत्रित करें। यह ध्यान करते समय मां के दिव्य रूप की कल्पना करें। इसके बाद माँ का जल और पंचामृत से स्नान कराएं। फिर मां को सुंदर वस्त्र, फूल, माला और आभूषण अर्पित करें। विशेष रूप से, कुम्हड़ा का भोग मां को अर्पित करना शुभ माना जाता है। मां को भोग में मिष्ठान्न, फल, नारियल और विशेष भोग अर्पित करें। मां कुष्मांडा को सफेद चीजों का भोग लगाना शुभ होता है। अंत में मां की आरती उतारें और उन्हें दीपक, धूप और गंध अर्पित करें।

TAGGED:9 devichitra navratrihumare bhgwanmaa kushmandanavratrivart tyoharसनातन धर्म
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