होली के दिन देशभर में लोगों में बहुत उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन लोग मित्रों और परिवार के सदस्यों को रंग और गुलाल लगाकर गले मिलते हैं और पर्व को मनाते हैं। इस त्योहार को देश में कई तरह से मनाया जाता है। वहीं, ब्रज में इस उत्सव की शुरुआत कुछ दिन पहले ही हो जाती है। सभी भक्त राधा कृष्ण के रंग में रंग जाते हैं। फाल्गुन महीने की नवमी तिथि की शुरुआत 7 मार्च को सुबह 9 बजकर 18 मिनट से होगी और इसका समापन 8 मार्च को सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर होगा। इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार 8 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाएगी।
बरसाना की लट्ठमार होली :-
हर साल ब्रज में बसंत पंचमी के दिन से होली की शुरुआत हो जाती है और इसका समापन रंगनाथ मंदिर में होली खेलकर किया जाता है. होलाष्टक लगते ही ब्रज के मंदिरों में होली खेलना शुरू हो जाता है. जिसकी शुरुआत बरसाने की लड्डू मार होली से होती है. इसके बाद लट्ठमार होली होती है. श्रीकृष्ण के नंदगांव और राधा रानी के बरसाने गांव में मुख्य रूप से लट्ठमार होली की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है.
लट्ठमार होली दो दिन खेली जाती है. एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में खेली जाती हैं, जिसमें बरसाने और नंदगांव के युवक और युवतियां भाग लेती हैं. एक दिन बरसाने में नंदगांव के युवक जाते हैं और बरसाने की युवतियां उन पर लट्ठ बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवक नंदगांव पहुंचकर लट्ठमार होली की परंपरा को निभाते हैं. बरसाना में होली को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है, जिसको लेकर लोगों में भरपूर उत्साह और उमंग देखने को मिलता है.
लट्ठमार होली की परंपरा ऐसे शुरू हुई :–
मान्यताओं के अनुसार, ब्रज में होली के त्यौहार को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। लट्ठमार होली की ये परंपरा श्री राधा रानी और श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है. कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को होली का त्योहार बहुत प्रिय है. होली के दिन भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ नंदगांव से राधारानी के गांव बरसाना जाते थे. एक बार, कृष्ण जी राधा से मिलने उनके गांव बरसाना पहुंचे, जहां उन्होंने राधा और उनकी सखियों को चिढ़ाना शुरू कर दिया। इससे नाराज होकर राधा रानी और उनकी सखियों ने मिलकर कृष्ण जी और उनके सखाओं को लाठी से पीटने लगीं। माना जाता है कि तभी से यह परंपरा शुरु हुई और आज भी बरसाना और नंदगांव में यह परंपरा निभाई जाती है.
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